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कुछ प्रसंग और निर्वाण. नहीं। प्राणीमात्र के प्रति मित्रत्व के सिवा उनकी कोई दृष्टि ही नहीं थी। उनसे वैरभाव रखनेवाले कितने ही लोग निकले। निकृष्ट-सेनिकृष्ट मिथ्या दूषण लगाने से लेकर उन्हें मार डालने तक के प्रयत्न किए गए। लेकिन उनके हृदय में उन विरोधियों के प्रति भी मित्रता के अतिरिक्त किसी प्रकार के होन-भाव नहीं पाए, यह नीचे के प्रसंगों से समझा जा सकता है, और उन पर से बवतार योग्य कैन पुरुष होते हैं, यह ध्यान में ला सकता है। ३. कौशांबीकी रानीः
कौशांबी के राजा उदयन की रानी जब कुमारी थी तब उसके पिता ने बुद्ध से उसका पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की थी। लेकिन उस समय बुद्ध ने उत्तर दिया था कि, " मनुष्य का नाशवंत शरीर पर से मोह छूटने के लिए मैने घर छोड़ा है। विवाह करने में मुझे कोई वानंद नहीं रहा । में इस कन्या को कैसे स्वीकार करूं?"
४. अपने-जैसी सुन्दर कन्या को अस्वीकार करने से उस कुमारी को अपना अपमान लगा। समय थाने पर उसने बुद्ध से बदला लेने का निश्चय किया। कुछ दिनों बाद वह उदयन राजा की पटानी हुई।
५. एक बार बुद्ध कौशांबी में आए। शहर के गुंडों को धन देकर उस रानी ने उन्हें सिखाया कि जब बुद्ध और उनके शिष्य भिक्षा के लिए शहर में भ्रमण करें तब उन्हें खूब गालयां दो। इस वह जब बुद्ध का संघ गलियों में प्रविष्ट हुबा कि चारों तरफ से मनपर बीमस गाड़ियों की वर्षा होने लगी। कई शिष्य अपशब्दों