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________________ उपदेश २९ __ राजा को पुरोहित का विचार बहुत अच्छा लगा। उसने तुरंत ही इस प्रकार व्यवस्था कर दी। जिससे थोड़े ही समय में राज्य में समृद्धि बढ़ गई। लोग अत्यंत आनंद से रहने लगे।" "इसके बाद राजाने पुरोहित को बुलाकर कहा-'पुरोहितजी, अब मेरी महायज्ञ करने की इच्छा है, इसलिए मुझे योग्य सलाह दीजिए।" "पुरोहित ने कहा-"महायज्ञ करने के पहले आपको प्रजा की अनुमति लेना उचित है। इसलिए स्थान-स्थान पर विज्ञप्तियाँ चिपकाकर प्रजा की सम्मति प्राप्त कीजिए।" पुरोहित की सूचनानुसार राजा ने विज्ञाप्तियाँ चिपकवा प्रजा से अपना अभिप्राय निर्भयता पूर्वक और स्पष्ट रूप से प्रकट करने को कहा । सबने अनुकूल मत दिया। तब पुरोहित ने यज्ञ की तैयारी कर राजा से कहा-"महाराज, यज्ञ करते समय मेरा कितना धन खर्च होगा ऐसा विचार भी बाप को मन में नहीं लाना चाहिए। यज्ञ होते समय बहुत खर्च होता है यह विचार नहीं करना चाहिए। यज्ञ पूरा होनेपर बहुत खर्च हो गया यह विचार भी नहीं होना चाहिए।' आपके यज्ञ में अच्छे-बुरे सब प्रकार के लोग आगे, लेकिन केवल सत्पुरुषों पर ही दृष्टि एख आपको यज्ञ करना चाहिए और चिच को प्रसन्न रखना चाहिए।"
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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