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________________ बुद्ध - बुद्ध बोले-"प्राचीन काल में महाविजित नामक एक बड़ा राजा हो गया है। उसने एक दिन विचार किया कि मेरे पास बहुत संपत्ति है । एकाध महायज्ञ करने में उसका व्यय करूँ तो मुझे बहुत पुण्य होगा।' उसने यह विचार अपने पुरोहित से कहा। पुरोहित ने कहा-"महाराज, इस समय अपने राज्य में शांति नहीं है। ग्रामों और शहरों में लूट-पाट मची है, लोगों को चोरों का बहुत त्रास है। ऐसी स्थिति में लोगों पर (यज्ञ के लिए) कर बिठाकर पाप कर्तव्य से विमुख होंगे। कदाचित् आप यह समझें कि डाकुओं और चोरों को पकड़कर फांसी देने से, कैद करने से अथवा देश से निकाल देने से शांति स्थापित हो सकेगी लेकिन यह भूल है। इस तरह राज्य की अन्धाधुन्धी का नाश नहीं होगा; क्यों कि इस उपाय से जो पकड़में नहीं आवेंगे वे फिर से उपद्रव करेंगे।" "अब मैं इस तूफान को मिटाने का सच्चा उपाय कहता हूँ : अपने राज्य में जो लोग खेती करना चाहते हैं, उनको आप बीज आदि दें। जो व्यापार करना चाहते हैं उन्हें पूजी दें। जो सरकारी नौकरी करना चाहते हैं उन्हें योग्य काम और उचित वेतन पर नियुक्त करें। इस तरह सब लोगों को योग्य काम मिलने से वे तूफान नहीं मचावेंगे, समय पर कर मिलने से आपकी तिजोरी भरेगी, लूटपाट का भय न रहने पर लोग बालबच्चों की इच्छा पूरी कर, दरवाजे खुले रख आनंद से सो सकेंगे।"
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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