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बुद्ध
कुलीन और शीलवती पत्नी मित्र के समान है। बहुत चिढ़ाने पर भी जो नहीं चिढ़ती, पति के प्रति जो कुविचार भी मन में नहीं छाती,. वह पत्नी दासी के समान है ।
६. सब वर्णों की समानता :
बुद्ध वर्ण के अभिमान को नहीं मानते थे । सब वर्णों को मोक्ष का अधिकार है। वर्ण का श्रेष्ठत्व प्रमाणित करने का कोई स्वतः सिद्ध आधार नहीं है। यदि क्षत्रिय आदि पाप करें तो वे नरक में ara और ब्राह्मण आदि पाप करें तो वे न जावें ? यदि ब्राह्मण आदि पुण्य कर्म करें तो वे स्वर्ग में जावें और क्षत्रिय आदि करे तो न जावें ? ब्राह्मण रागद्वेषादि रहित हो, मित्र भावना कर सकें और क्षत्रिय आदि न कर सकें ? इन सब विषयों में चारों वर्णों का समान अधिकार है, यह स्पष्ट है।" फिर एक ब्राह्मण निरक्षर हो और दूसरा विद्वान हो तो यज्ञ आदि में पहले किसको आमंत्रित किया जायगा ? आप कहेंगे कि विद्वान् को तो विद्वत्ता ही पूजनीय हुई, जाति नहीं ।
लेकिन जो विद्वान ब्राह्मण शीलरिहत दुराचारी हो और निरक्षर ब्राह्मण अत्यंत शीलवान हो तो किसे पूज्य मानोगे ? उत्तर स्पष्ट है कि शीलवान को ।
लेकिन इस तरह जाति की अपेक्षा विद्वता श्रेष्ठ ठहरती है १. तुलना कीजिए:
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, निष्काम-क्रोध-लोमता । सर्व भूत हित इच्छा - यह धर्म है सब वर्णों का ।।
( संस्कृत साहित्यपर से )