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________________ २२ - समझ कर भी सच न मान को। ऐसा होनेवाला है, यह समझकर भी सच न मान लो। लौकिक न्याय समझकर भी सच न मान लो। सुन्दर लगता है इसलिए भी सच न मान लो। प्रसिद्ध साधु हूँ, पूज्य हूँ, यह समझकर भी सच न मान लो। तुम्हें अपनी विवेकबुद्धि मरा उपदेश सच लगे तो ही तुम इसे स्वीकार करी।" २. दिशा-वन्दन: उस समय कितने ही लोग ऐसा नियम पालते थे कि प्रातः काल स्नान कर पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उर्ध्व और अधो इन छः दिशाओं का वन्दन किया करते । बुद्ध ने छः दिशा इस प्रकार बताई है: स्नान कर पवित्र होना ही पर्याप्त नहीं है। छः दिशाओंको नमस्कार करनेवाले को नीचे लिखो चौदह बातों का त्याग करना चाहिए: १. प्राणघात, चोरी, व्यभिचार, असत्य-भाषण ये चार दुखरूप कर्म, . २. स्वच्छंदता, द्वेष, भय और मोह ये चार पाप के कारण और ३. मद्यपान, त्रिभ्रमण, खेल-तमाशे, व्यसन, जुआ, कुसंगति और आलस--ये छः सम्पत्ति नाश के द्वार। इस प्रकार पवित्र हो, माता-पिता को पूर्व दिशा समझ उनकी पूजा करना। यानी उनका काम भौर पापण करना, कुल में चले पाए
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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