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नहीं होता है तो किस तरह ? यह सब बातें प्रत्यक्ष हो गई। शंकाओं का निराकरण हो गया। अशांति के स्थान पर शांति हो गई । सिद्धार्थ अज्ञान निद्रा से जागकर 'बुद्ध' हो गए । वैशाख सुदी १५ के दिन उन्हें प्रथम ज्ञान-स्फुरण हुआ। इसलिए इस दिन बुद्धजयंती मनाई जाती है। बहुत दिन तक उन्होंने धूम-घूमकर अपने स्फुरित ज्ञान पर विचार किया। जब सारे संशयों का निराकरण हो गया, प्राप्त ज्ञान की उन्हें यथार्थता प्रतीत हो गई तब स्वयं शोधित सत्य प्रकट कर अपने भगीरथ प्रयत्नों का लाभ जगत् को देने के लिए उन्हें उनकी संसार-सम्बन्धी और कारुण्य भावनाओं ने प्रेरित किया।
१. बौद्ध ग्रंथों में लिखा है कि ब्रह्मदेव ने उन्हें जगदुद्धार के लिए प्रेरित किया । लेकिन मैत्री, करुणा, प्रमोद (पुण्यवान लोगों को देख जानंद और पूज्यता की वृत्ति) उपेक्षा (हठपूर्वक पाप में रहनेबालों के प्रति ) इन चार भावनालों को ही बुद्धधर्म में 'ब्रह्मविहार' कहा है। इस रूपक को छोड़ कर सरल भाषा में ही ऊपर समझाया है। चतुर्मख ब्रह्मदेव की कल्पना को वैदिक ग्रन्थों में अनेक प्रकार से समझाया है, उसी तरह यह दूसरी रीति है। सरल वस्तु को सीधे ढंग से न कह कवि रूपक में कहते हैं। कालान्तर में रूपक का अर्थ दब जाता है, सामान्य जन रूपक को ही सत्य मानकर पूजा करते हैं और नए कवि अपनी कल्पना से ऐसे रूपकों का अपनी रुचि के अनुसार अर्थ करते हैं। फिर भी वे रूपक को नहीं छोड़ते और रूपक को रूपक के रूप में पूजना भी नहीं छोड़ते। मुझमें काव्य प्रतिभा की