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तपश्चर्या
अपने सिध्दांत सिखलाए । सिध्दार्थ उन्हें सीख गया । और, इस विषयम वह इतना कुशल होगया कि किसीके कुछ पूछने पर वह उनका बराबर उचर दे सकता था तथा उनके साथ चर्चा भी कर सकता था कालाम के बहुत से शिष्य इस प्रकार कुशल पंडित हुए थे । लेकिन सिध्दार्थ को इतने से संतोष नहीं हुआ। उसे किसी अमुक सिध्दांतपर वाद-विवाद करनेकी शक्तिकी आवश्यकता नहीं थी। उसे तो दुःखका निवारण करनेकी औषधि चाहिए थी।
वह केवल वाद-विवादसे कैसे मिलती ! इसलिए उसने अपने गुरुसे विनय-पूर्वक कहा “ मुझे केवल आपके सिद्धांतों का ज्ञान नहीं चाहिए था, लेकिन जिस रीतिसे ये सिध्दांत अनुभवमें आ सके, वह रीति सिखाइए । इससे कालाम मुनिने सिध्दार्थको अपना समाधि-मार्ग बताया । इस मार्गकी सात भूमिकाएँ थी । सिध्दार्थने उन सात भूमिकाओंको जल्दीही सिद्ध कर लिया। बादमें उसने गुस्से कहा: " अब इसके आगे!" लेकिन कालामने कहा "भाई मैं इतनाही जानता है। मैंने जितना जाना है उतना तुमने मी जान लिया है, इसलिए तुम और मैं अब समान होगए हैं। अतः अब हम दोनोंको मिलकर मेरे इस मार्गका प्रचार करना चाहिए।" ऐसा का उसने सिद्धार्थका बहुत सन्मान किया ।
३. असंतोष
लेकिन इतने से सिदार्थको संतोष हुआ नहीं । उसने विचार किया। " इस समाधि से कुछ समय तक दुःखके कारणों को दबाकर रखा जा सकता है। लेकिन उनका बड़-मूढसे उच्छेद नहीं होता, इसलिए मोबका मार्ग जैसा गुरु कहते हैं, उससे कुछ भिन्न होना चाहिए।