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महावीर का जीवन-धर्म
जैन धर्म का खास अंग माना गया है। अहिंसा परम धर्म है। इसे सिद्धान्त रूप में वैदिकों और बौद्धों ने भी माना है, लेकिन उसे पाचरण में उतारनेवाले महावीर ही हैं, यह मान्यता है। जीव का घात न करना इस अर्थ में जैन अहिंसाधर्म को बहुत ही बारीकी में ले गए हैं। इस विषय में नहीं, लेकिन आज की स्थिति देखते हुए 'अहिंसा' शब्द बोलते हुए भी शर्म आती है। ३०. आहिंसा की विकृति
आज हमारे मन में अहिंसा का अर्थ ऐसा हो गया है जैसे उसे रक्त से रंग दिया हो। यदि कहीं रक्त से मिलता हुआ रंग दिखाई दे तो हम उसे देख नहीं सकते । फिर वह किसी मनुष्य या प्राणी का घाव हो, मसूर की दाल हो, पके टमाटर हों या लाल नवकोल की शाक हो या तरबूज हो या गाजर हो। इस रंग को दिखाये बिना यदि हमारे पांव से कोई मनुष्य पिस-पिस कर मर जाय, हम उसका सर्वस्त्र छीनकर उसकी हड्डी-पसली चूस लें तो भी हमें ऐसा भान नहीं होता कि हम हिंसा करते हैं। लेकिन यदि कोई गाड़ी के नीचे कुचल जावे अथवा किसी का घाव फूटे या वमन में रक्त देख लें; तो हमारी हिम्मत नहीं कि हम ग्लानि के बिना अथवा हुबक आए बिना समीप खड़े रह सकें और उसकी देखमाल कर सकें। लेकिन अहिंसा अर्थात् रक्त या रक्त से मिलते रंग की ग्लानि नहीं है, अहिंसा अर्थात् प्रेम या दया है । हिंसा यानी