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________________ १४० जनों का कल्याण साधना हो तो आप अपने कुटुम्ब का वातावरण प्रेम-युक्त करें। स्वार्थ- वृत्ति, क्षुद्र-वृत्ति स कुटुम्ब का वातावरण अशुद्ध न करें। भाषण २५. महावीर दृढ़ निश्चयी और पुरुषार्थी थे : बाल्यकाल से ही महावीर में दीख पड़ने वाली एक दूसरी वृत्ति थी, वह है उनका पराक्रम, पुरुषार्थ और दृढ़ निश्चय । जैन धर्म में ऐसा माना गया है कि क्षत्रिय ही तीर्थंकर पद के अधिकारी हो सकते हैं । इसका अर्थ मैं यह समझता हूं कि तीर्थंकर पद के मार्ग पर पुरुषार्थी और शूर पुरुष ही चल सकता है । यह विकुल सच बात है कि जहाँ पुरुषार्थ नहीं वहाँ किसी भी महान् वस्तु की प्राप्ति नहीं होती । ऐहिक मार्ग या पारमार्थिक मार्ग में जो भी महान् वस्तु आपको सिद्ध करनी हो, उसके लिए शूरता और पुरुषार्थ चाहिए हो । शूरता का अर्थ है उस वस्तु के पीछे दूसरा सब कुछ कुर्बान करने की तैयारी । जोना भी उसीके लिए और मरना भी उसीके 1 लिए । पुरुषार्थ अर्थात् उस बस्तुको सिद्ध करने के लिए रात-दिन का प्रयत्न और दूसरों की सहायता की अपेक्षा न रखना, काऊसग्ग-( कायोत्सर्ग करके रहना, दिगंबर दशा तक अपरिग्रही हो जाना, उपसर्ग और परीषहों को सहन करना, किसी पर अवलम्बित न रहना ये सब निश्चय महावीर में समाए हुए अथक पुरुषार्थ को प्रकट करते हैं। जो गुण सांसारिक जीवन में बड़ा बनने के लिए चाहिए वे ही गुण परमार्थ सिद्ध करने के लिए भी चाहिए। इन गुणोंवाला सांसारिक पुरुष वीर कहलाता है । इन्हीं गुणों का परमार्थ में उपयोग करने से श्री वर्धमान महावीर कहलाए ।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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