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________________ - - महावीर का जीवन-धर्म १३९ शुद्धता है, यह स्पष्ट है । लेकिन अजामिल जैसा भी कवल न:स्वार्थ प्रेम के बल से सन्त-कृपा और इच्छा हो तो मृत्यु के पहले शान्ति का ..नुभव कर सकता है। देव-भक्ति, देशानुराग, भूतदया की जड़ पाल-काल में कुटुम्ब में परिपुष्ट हुई प्रेम वृत्ति में है। यहा प्रेम अधिक शुद्ध हो और विस्तृत क्षेत्र में फैले ती देव-भकि, देश-भक्ति भूत-दया अहिंसा में बदल जावगा। २३. वैराग्य क्या है ? नब वैराग्य क्या है ? वैराग्य अथात् कर्तव्य का त्याग अथवा बन्धनों का जबर्दस्ती से त्याग अथवा अरुचि नहीं है। लेकिन वैराग्य यानी स्वाथ का त्याग, सुखप्राप्ति की इच्छा का त्याग, भोग भोगने की इच्छा का त्याग है। २४. महावीर में तीव्र प्रेम और वैराग्य था: यदि आप महावीर स्वामी का जीवन-चरित्र देखेंगे तो इसमें तीव्र वैराग्य और तीव्र प्रेम दिखाई देगा। दूसरों के प्रति जूही की नरह कोमलता और अपने प्रति वन जैसी कठोरता दोनों साथ-साथ देखेंगे। और इन भावनाओं का पोषण कौटुम्बिक वातावरण से हुमा दीखेगा। जैसे इनके कुटुम्ब में माँ-बेटे के बीच प्रेम था, वैसा ही भाई-भाई के बीच भी। कहा गया है कि उनके बड़े भाई उन्हें घर में रखने के लिए ही उन्हें राजपाट सौप देने को तैयार थे। भाई के प्रति यह कैसी प्रेम वृत्ति है ! मैं आपसे अंतःकरण से कहता हूँ कि यदि आपको अपना या अपने बालकों का अथवा दूसरे कुटुम्बी
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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