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________________ - इन संक्षिप्त चरित्रों की यथार्थ उपयोगिता कितनी है ? इतिहास, पुराण अथवा बौद्ध, जैन, ईसाई शास्त्रों का सूक्ष्म अभ्यास कर चिकित्सक वृत्ति से मैंने कोई नया संशोधन किया है, यह नहीं कहा जा सकता। इसके लिए पाठकों को श्री चिंतामणि विनायक वैद्य अथवा श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय आदि की विद्वचापूर्ण पुस्तकोंका अभ्यास करना चाहिए। फिर चरित्र-नायकों के प्रति असाम्प्रदायिक दृष्टि रखकर नित्य के धार्मिक पठन-पाठन में उपयोगी हो सकेगी, ऐसी शैली या विस्तार से सारे चरित्र लिखे हुए नहीं हैं। ऐसी पुस्तक की जरूरत है, यह मैं मानता हूँ; लेकिन यह कार्य हाथ दे लेने के लिए जैसा अभ्यास चाहिए उसके लिए मैं समय या शक्ति में सर्केगा, यह संभव मालूम नहीं होता। मनुष्य स्वमावसेही किसी की पूजा किया करता है। कइयों को देव मानकर पूजता है, तो कइयों को मनुष्य समझकर पूजता है। जिन्हें देव मानकर पूजता है, उन्हें अपने से मिल जाति का समझता हैजिन्हें मनुष्य समझकर पूजता है उन्हें वह अपने से छोटा-बड़ा आदर्श लमझकर पूजता है । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईसा आदि को मिन-भिन्न प्रजा के लोग देव बनाकर-अमानव बनाकर पूजते गाए हैं। उन्हें आदर्श मान उन-जैसे होने की इच्छा रख प्रयत्न कर, अपना अभ्युदय न साथ उनका नामोधारण कर, उनमें उद्धारक शक्तिका आरोपण कर, उनमें विश्वास
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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