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भाषण
हैं। लेकिन ऐसा न हो तो ऐसी जयंतियां मनाने में मैं किसी तरह का लाभ नहीं देखता। यदि खयाल हो कि जयंती मनाने से श्री पहावीर की किसी तरह कद्र होती है तो वह भूल है। महावीर की कद्र करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि यदि आप कद्र न करें तो उससे उनके जीवन का मूल्य घट जाने और कद्र करने से वह अधिक उन्नत होने से रहा । आप निजी उन्नति के लिए महावीर की लपासना करते हैं और सिर्फ उसीके लिए आपको उनकी जयंती मनानी चाहिए। जीवन को उन्नत बनाने की आपको उत्कंठा न हो तो जयंती मनाने से कोई हेतु पूरा नहीं होगा।
४. इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप यदि यह जयंती मनाने की इच्छा रखने हों तो गंभीर भावसे ही मनावें। यदि आप मनोरंजन करने या अपने पंथ की वाह-वाह कराने या स्वर्ग का या इस लोक का कोई सुख प्राप्त करने की आशा रखते हों तो वह छोड़ दीजिए। और यदि वे बाशाएँ न छूटे तो जयंती मनाना छोड़ दीजिए और यह मनोरंजन, वाह-वाह या पुण्य किसी दूसरे मार्ग से प्राप्त कीजिए।
५. यदि ऐसे गंभीर माव से आपको जयंती मनानी हो तो मैं बताता हूँ कि मेरे विचार से वह कैसी मनायी जानी चाहिए। नेकिन इन विचारों में से जितने अनुकूल हों उतने ही आपको लेना है और जो आपके सस्कारों के अनुकूल न हों, उन्हें छोड़ दीजिएगा।