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________________ महावीर का जीवन-धर्म २. जीवन गंभीर है .' ' यों चाहं मैं गंभीर वृत्ति का मनुष्य न भी होऊ लेकिन ऐसे प्रसंगों के लिए मेरी वृत्ति अत्यंत गंभीर है। जीवन को मैं अत्यंत गंभीर वस्तु समझता हूँ और महावीर-जैसे जीवन के साथी पुरुष की जयती को मैं गंभीर प्रसंगों में मानता हूँ। मैं नहीं जानता कि बाप मेरी तुलना कितने बैंशों में समझ सकेंगे। लेकिन गांभीर्य क्या है, यह आपको उदाहरण द्वारा समझाने का प्रयत्न करूँगा । मान लीजिए कि आप बोरसद के सत्याग्रह के समय विचार कर रहे हैं अथवा बाबरा (डाकू) के बारे में विचार कर रहे हैं अथवा चापके घर में किसी का बड़ा ऑपरेशन करवाना हो और उसका आप विचार कर रहे हैं। उस समय आपकं मन की वृत्ति कितनी गंभीर होती है इसका खयाल कीजिए। जैसे ये बातें जीवन के साथ जुड़ी हुई हैं वैसे ही ये महापुरुप भी अपने जीवन के साथ जुड़े हुए मालूम होना चाहिए। जैसे उपर्युक्त प्रसंगों में आपको अपने जान-माल की चिता होगी वैसे ही इनके सम्बंध में आपको अपने जीव की गनी चाहिए। अंतर कंवल इतना ही है कि पहले प्रसंगों में कदाचित् घबराहट और खेद होमा और इसमें उनकी जगह उत्साह और साहस । मैं इस वृत्ति को गंभीर वृत्ति कहता हूँ। ३. निजी उन्नति जयन्ती का उद्देश्य: यदि आप इस गंभीर वृत्ति से महावीर जयंती मनावें तो उससे बापको लाभ होगा। बापको अनुभव होगा कि प्रत्येक जयंती पर आप जीवन विकास के मार्ग में एक एक पैर बागे बढ़ाते
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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