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होते हैं। उनके बचन ही शास्त्र होते हैं और उनका आचरण हो दूसरों के लिए दीप-शंभ के समाम होता | उन्होंने परमतत्व जान लिया है, उन्होंने अपना अंतःकरण शुद्ध किया है। ऐसे सज्ञान, सविबेक और शुद्ध चित्त को जो विचार सूझते हैं, जो आचरण योग्य लगता है वही सत्-शास्त्र, वही सद्धर्म है। दूसरे कोई भी शास्त्र उन्हें बाँध नहीं सकते अथवा उनके निर्णय में अन्तर नहीं डाल सकते ।
अपने आशयों को उदार बनाने पर, अपनी आकांक्षाओं को उच्च बनाने पर और प्रभु की शक्ति का ज्ञानपूर्वक अवलंबन लेने पर हम और अवतार गिने जानेवाले पुरुष तस्वतः भिन्न नहीं रहते । बिजली की शक्ति घर में लगी हुई है; उसका उपयोग हम एक क्षुद्र घंटी बजाने में कर सकते हैं, और वह बड़े-बड़े दीपोंकी पंक्ति से सारे घर को प्रकाशित भी कर सकती हैं। इसी प्रकार परमतत्त्व हमारे प्रत्येक के हृदय में विराज रहा है, उसकी सत्ता से हम एक क्षुद्र वासना की तृप्ति कर सकते हैं अथवा महान् और चरित्रवान् बन संसार से तिर सकते हैं और दूसरों को तारने में सहायक हो सकते हैं।
महापुरुष अपनी रग-रग में परमात्मा के बक का अनुभव करते हुए पवित्र होने, पराक्रमी होने, पर-दुःख-भंजक होने की आकांक्षा रखते हैं। उन्होंने इस बक द्वारा सुख-दुःख से परे करुणहृदय, वैराग्यवान, ज्ञानवान और प्राणि- मात्र के मित्र होने की