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"मात्मा सत्य-काम सत्य-संकल्प है" यह वेद-वाक्य है। हम जो धारण करें, इच्छा करें, वह प्राप्त कर सके, यह इसका अर्थ होता है। जिस शक्ति के कारण अपनी कामनाएँ सिद्ध होती है उसे ही हम परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्म कहते हैं। जान-अनजान में भी इसी परमात्मा की शक्ति का अवलंबन-शरण लेकर ही हमने बाज की स्थिति प्राप्त की है और भविष्य की स्थिति भी शक्ति का अवलंबन लेकर प्राप्त करेंगे। रामकृष्ण ने इसी शक्ति का अवलंबन लेकर पूजा के योग्य पद को प्राप्त किया था और बाद में भी मनुष्य जाति में जो पूजा के पात्र होंगे, वे भी इसी शक्ति का अवलंबन लेकर ही। हममें और उनमें इतना ही अन्तर है कि हम मूढ़तापूर्वक, अज्ञानतापूर्वक इस शक्ति का उपयोग करते हैं और उन्होंने बुद्धिपूर्वक उसका बालंबन किया है।
दूसरा अन्तर यह है कि हम अपनी क्षुद्र वासनाओंको तृप्त करने में परमात्म-शक्ति का उपयोग करते हैं। महापुरुष की आकाक्याएँ, उनके बाशय महान् और उदार होते हैं। उन्हींके लिए वे भास्म-बल का आश्रय लेते हैं।
तीसरा अन्तर यह है कि सामान्य जन-समाज महापुरुषों के धचनों का अनुसरण करनेवाला और उनके आश्रय से तथा उनके प्रति श्रद्धा से अपना उद्धार माननेवाला होता है। प्राचीन शास्त्र ही उनके आधार होते हैं। महापुरुष केवल शास्त्रों का अनुसरण करने घाले ही नहीं; वे शास्त्रों की रचना करनेवाले और बदलनेवाले भी