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समालोचना
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पूर्व काल में हुए अवतार पुरुष हमारे लिए दीप-गृह के समान हैं। इन की भक्ति का अर्थ है, इनके चरित्र का ध्यान । इनकी भक्ति का निषेध हो ही नहीं सकता, परन्तु अवतार जितने प्राचीन होते हैं, उतना ही उनका माहात्म्य अधिक बढ़ता जाता है । यहीं भूल होती है। अपने समय के सन्त-पुरुषों की खोज करके उनकी महिमा को समझने की बुद्धि हममें होनी चाहिए। जगत जिस तरह असुररहित नहीं है, उसी तरह सम्-हिल भी नहीं है ।