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महावीर १. स्यावाद की दृष्टियाँ:
प्रत्येक विषय पर बनेक दृष्टि से विचार किया जा सकता है। सम्भव है कि वह एक दृष्टि से एक तए का दिखाई दे और दूसरी दृष्टि से दूसरी तरह का और विसलिए प्रत्येक मुझ मनुष्य का यह कर्तव्य है कि प्रत्येक विषय की पूर्णरूपेण परीक्षा करे और प्रत्येक दिशा से उसकी मर्यादा का पता लगाए । किसी एक ही दृष्टि से खिंच कर वही एक मात्र सच्ची दृष्टि है, ऐसा बाग्रह रखना संतुलन दृष्टि की अपरिपक्वता प्रकट करता है। दूसरे पक्ष की दृष्टि को समझने का प्रयत्न करना और उम पक्ष की दृष्टि का खंडन करने का हठ रखने की अपेक्षा किस दृष्टि से उसका कहना सच हो सकता है, यह शोधने का प्रयत्न करना संक्षेप में यही स्याद्वाद है, ऐसा मैं समझता हूँ, स्याद् अर्थात् 'ऐसा भी हो सकता है। इस विचार को अनुमोदन करनेवाला मत स्याद्नाद है। सत्यशोधक में ऐसी वृत्ति का होना आवश्यक है।
१० स्थावाद की मर्यादा :
स्याद्वाद का अर्थ यह नहीं कि मनुष्य को किसी भी विषय सम्बन्ध में किसी भी निश्चय पर पहुंचना ही नहीं, बल्कि वह तो
१-इसके विशेष विवेचन के लिए देखिए श्री नर्मदाशंकर देवशंकर
मेहता का दर्शनों के अभ्यास में रखने योग्य मध्यस्थता' सम्बन्धी लेख (प्रस्थान, पु.द. पृष्ठ ३३१-३३८)