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महावीर मुख प्रिय है वैसे ही सभी प्राणियों को सुख प्रिय है- ऐसा सोच. कर किसी भी प्राणी को न:मारना, और न दूसरों से ही मरवाना। लोगों के दुःख को समझनेवाले सभी ज्ञानी पुरुषों ने मुनियों, गृहस्थों, रागियों, त्यागियों, मोगियों और योगियों को ऐसा पवित्र और शाश्वत धर्म बताया है कि किसी भी जीव की न हिंसा करना, न उसपर हुकूमत चलाना, न उसको अपने अधीन करना,
और न परेशान करना चाहिए । पराक्रमी पुरुष संकट आने पर भी दया नहीं छोड़ते।
५.दारुणतम युद्ध
हे मुनि ! अंतर में ही युद्ध कर । दूसरे बाल-युद्ध की क्या जरूरत है ? युद्ध की इतनी सामग्री मिलना बड़ा कठिन है। ६. विवेक ही सच्चा साथी : ___यदि विवेक हो तो गाँव में रहने में भी धर्म रहता है और वन में रहने में भी। यदि विवेक न हो तो दोनों निवास अधर्म रूप हैं।
७. स्याद्वाद
__ महावीर का स्याद्वाद तत्व-चिंतन में बहुत बड़ा अवदान माना जाता है। विचार में संतुलन रखना बड़ा कठिन है। बड़े-बड़े विचारक भी जब विचार करने बैठते हैं तब अपने पहले से बने हुए खयालों के आधार पर चलते हैं । वस्तुतः संसार के सभी व्यवहाय सिद्धान्त, मर्यादा या अर्थ में हो मच्चे होते हैं । भिन्न मर्यादा या