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( ७० ) के पास आया और वहाँ अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाने का प्रयत्न किया। तब भगवान् ने जो ठीक बात थी, उसे कहा । इससे वह और भी क्रोधित हो गया। यह देख कर उसे दो साधु समझाने गये तब उसने उनपर तेजोलेश्या छोड़कर उन्हें जलाकर भस्म कर दिया। भगवान् ने उसे समझाया परन्तु परिणाम उल्टा निकला।
उसने भगवान् पर भी तेजोलेश्या छोड़ी। यह तेजोलेश्या भगवान् को स्पर्श करके वापिस गोशालक के शरीर में प्रवेश कर गयी और उस तेजोलेश्या की जलन से गोशालक सातवी रात्रि को पित्तज्वर के दाह से मृत्यु को प्राप्त हो गया। __इस तेजोलेश्या के स्पर्शमात्र से भगवान महावीर को पित्तज्वर तथा लहू के दस्त (पेचिश) होने लग गये । यह देखकर प्रजा को तया अनेक साधुओं को बहुत चिन्ता हो गयी और सर्वत्र यह बात फैल गयी कि भगवान् महावीर छ: मास में देह त्याग देंगे। जिसको प्रभु पर अत्यन्त राग था ऐसा सिंह नाम का अणगार (जैन श्रमण) जो जंगल में ध्यान कर रहा था, उसने भी वहां यह बात सुनी। वह दुःखी होकर फूट-फूट कर रोने लगा । भगवान् ने अपने ज्ञान द्वारा इस बात को जान कर सिंह मुनि को दूसरे साधु द्वारा अपने पास बुलाया और उसे सान्त्वना दी। जनता तथा मुनिजनों की चिन्ता को दूर करने के लिए भगवान् ने सिंह मुनि से कहा
हे सिंह ! तुम मेडिक ग्राम नगर में जाओ; वहाँ गृहपति की पत्नी रेवती ने दो पाक तैयार किए हुए हैं। उनमें एक मेरे लिए बनाया है तथा दूसरा अपने घर के लिये बना कर रखा हुआ है । जो पाक मेरे लिए बनाया है उससे प्रयोजन नहीं (वह मत लाना)। परन्तु जो दूसरा उसने अपने लिए बना कर रखा हुआ है उसे ले आओ।" ।
भगवान् ने वह पाक आसक्ति से रहित होकर खाया और पीड़ा शांत