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[ ११ ] महाश्रमण भगवान् महावीर स्वामी पर मांसाहार के आरोप का निराकरण
जनों के पांचवें अंग श्री भगवतीसूत्र के जिस पाठ का अर्थ करते हुए श्रमण भगवान महावीर को मांसाहारी सिद्ध करने की जो अनुचित चेष्टा की गयी है उसके विषय में इस विचित्र कल्पना का निरसन करना नितान्त आवश्यक है, जिससे पाठक वास्तविकता को समझ सके ।
भगवती सूत्र के पन्द्रहवे शतक में गोशालक का वर्णन आता है । उसका संक्षिप्त सारांश यह है :__ गोशालक पहले भगवान महावीर का शिष्य था और भगवान के साथ लग-भग छ: वर्षों तक रहा। अलग होने के बाद उसने तेजोलेश्या सिद्ध को तथा अष्टाङ्ग निमित्त का अभ्यास करके अपने आप को सर्वत्र होने की उद्घोषणा की। एक बार वह श्रावस्ती नगरी में आया और वहा अपने आप को सर्वज्ञ रूप में प्रसिद्ध करने लगा। जनता में इस बात की चर्चा होने लगी। बाद मे उसी नगरी में भगवान् महावीर स्वामी पधारे। नगर निवासियों ने गोशालक की सर्वज्ञता की बात भगवान् महावीर के मुख्य शिष्य श्री इन्द्रभूति गौतम स्वामी से पूछी। गौतम स्वामी ने प्रमु महावीर से पूछा । तब प्रभु ने गोशालक की सारी जीवनकथा कह सुनायी तथा गोशालक ने सर्वजत्व (जिन पद) प्राप्त नहीं किया यह भी कहा। गोशालक का यह जीवनचरित्र लोगों में चर्चा का विषय बन गया। यह बात गोशालक के कानों तक भी पहुंची तब वह बहुत क्रोधित हुआ। क्रोध से जला भुना एक बार वह प्रभु महावीर स्वामी