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हैती माटे की गोली में से भी अवश्य निकलना चाहिए परन्तु ऐसा नहीं होता क्योंकि माटे की गोली में पहले जीव नहीं होता।
अण्डा गर्भ में बनता है बौर जीव भी गर्भ में पैदा होता है। बाहर आकर केवल परिपक्व होता है और पूर्ण होता है। यहां यह बात समझ लेनी चाहिए कि अण्डे भी यो प्रकार के होते हैं 'मर्मज, सम्मूछिन । मुर्गी बादि के बण्डे गर्भ में उत्पन्न है इसलिए अच्छे से निकलने वाले जीव को द्विज कहते हैं। विज का अर्थ है दो बार जन्म लेना। एक जन्म गर्भ में आकर अण्डे के रूप में उत्पन्न होता है दूसरा अण्डे के गर्भ से बाहर जाने के पश्चात् उस में से बच्चे के रूप में निकलना दूसरा जन्म है । इस प्रकार अण्डा सजीव सिद्ध होता है।
पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि गर्भज अण्डा दो प्रकार का होता है(१)लिस अण्डे मैं से बच्चा बन कर निकलता है (२) जिस अण्डे में से बच्चा बम कर नहीं निकलता। अत: वे कहते हैं कि जिस बंडे में से बच्ची बन कर निकलता है उसमें जीवनी शक्ति है और जिसमें से बच्ची बैन कर नहीं निकलता उसमें जीवनी शक्ति नहीं है परन्तु उनकी यह धारणा भी ठीक प्रतीत नहीं होती । वास्तव में दोनों में जीवनी शक्ति है। जिस प्रकार बंध्या स्त्री में ममम क्रिया नहीं होती इसकी अर्थ यह नहीं कि उसकी योनि मिर्जीव है अर्थात् उसकी वोनि सजीव होने पर भी उसमें बैनन क्रिया का बभाव है और अवघ्या स्त्री में जनन सक्ति होने पर जनन क्रिया होती है वैसे ही बंध्या अण्डों में सेब निकलते हैं और वंध्या अण्डों में से बच्चे नहीं निकलते । अतः बजे बादि का भक्षण भी उचित नहीं है इसलिए भगवान महावीर वापि सभी तीर्थकरों ने बों को भी अमक्य मान कर इसका प्रयोग उचित नहीं माना बार इसीलिए जैन-अहिंसक लोग माज भी अण्डे का प्रयोग नहीं करते।
नागन-विपाक सूत्र के तीसरे मध्ययन "भभमसेन" में वर्णन कि एक बार श्रमण भगवान् महावीर के मुख्य शिष्य लागि नौवन गणपर