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मजे मम्मि उप्पण्वंति
( ४३ )
मंसम्मि नवणीयमि चडत्यए . जंतुणो ॥ २ ॥
अनंता तव्वण्णा तत्य
(श्लोक ६६, ६७)
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अर्थात् " कच्चे पक्के और अग्नि में पकाये हुए मांस की प्रत्येक araस्था में अनन्त निगोद जीवों की उत्पत्ति होती रहती है। मदिरा, मधु, मांस और मक्खन में मद्य, मधु, माँस और मक्खन के रंग के अनन्त जीवों की उत्पत्ति होती है ।" इस प्रकार मांस आदि खाने से अनन्त जीवों का नाश होता है अतएव इनका सेवन करना दोजपूर्ण है ।
१६ --- आज के विज्ञान ने भी इस बात को स्पष्ट सिद्ध कर दिया है कि मांस अनगिनत जीव कीटाणुओं का पुंज है और उसमें प्रतिक्षण कृमि समान जीव उत्पन्न होते रहते हैं ।
१७- भगवान महावीर आचारांग सूत्र में फरमाते हैं :---
से बेमि - जे अईया जे य पड़ना, जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्वंति एवं भासंति, एवं पर्णावति, एवं पविति सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सब्वे जीवा, सव्वे सत्ता, न हंतब्बा, न अज्जावेroat, न परिधितव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयब्वा । एसधम्मं सुद्ध लिइए, सासए, समिच्च लोयं खयण्णाह पवेइए तं जहा -- उट्ठिए सु वा अणुट्ठिएसु वा उर्वाट्ठिएस वा अणुवट्ठिएसुवा, उवरवंडे वा, अणुवरयवंडे वा, सोबहिएसु वा, अगोबहिएसु वा, सजोगएसु वा, असजोगएसु वा, तच्च चेयं, तहा चेयं अल्स चेयं पवुच्चई । ( आचारांगे)
भावार्थ :--- वे (भगवान् महावीर ) कहते हैं कि भूतकाल में जो तीर्थंकर हो चुके हैं, अब जो विद्यमान हैं और जो अनागत काल में होंगे; वे सब इस तरह कहते हैं, बोलते हैं, दूसरों को समझाते हैं तथा प्ररूपणा करते हैं- किसी भी प्राण, भूत, जीव और सत्वों को नहीं मारना चाहिए। उनपर शासन ( दबाव) नहीं डालना चाहिए, उन्ह दास की तरह अधिकार में नहीं रखना चाहिए। उन्हें किसी प्रकार का संताप नहीं देना चाहिए। तथा उनके प्राणों को नहीं लूटना चाहिए । यही धर्म शुद्ध है, नित्य है,