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[६] श्रमण भगवान् महावीर तथा अहिंसा
साढ़े बारह वर्ष की कठिन तपस्या और घोर योगचर्या के पश्चात् भगवान् महावीर-वर्धमान को केवलज्ञान-केवलदर्शन की प्राप्ति हुई। वे सर्वज-सर्वदर्शी जीवनमुक्त परमात्मा हुए। अब तीर्थंकर प्रकृति का पूर्ण विकास उन के महान व्यक्तित्व में हुआ। केवलज्ञान को प्राप्ति से भगवान् महावीर सारे विश्व के त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को हाथ की अंगुलियों के मान प्रत्यक्ष जानने लगे। उस समय वे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य के जीवित पुञ्ज थे। जैनागमों में सर्वत्र भगवान महावीर को सर्वज्ञ सर्वदर्शी माना है। ज्ञातपुत्र महावीर के समकालीन बौद्धों के पिटकों में भी भगवान महावीर को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी स्वीकार किया है। बौद्धों के अंगुत्तरनिकाय' नामक ग्रन्थ में लिखा है कि ज्ञातपुत्र महावीर सर्वज्ञाता और सर्वदर्शी थे। उनको सर्वज्ञता अनन्त थी। वे चलते-बैठते, सोते-जागते हर समय सर्वज्ञ थे। 'मज्झिम निकाय' में उल्लेख है कि ज्ञातपुत्र महावीर सर्वज्ञ हैं। वे जानते हैं कि किस-किसने किस प्रकार का पाप किया है और किसने नहीं किया है। • भगवान महावीर अहिंसा तत्त्व की साधना करना चाहते थे । उसके लिये उन्होंने संयम और तप ये दो साधन पसन्द किये। उन्होंने यह विचार किया कि मनुष्य अपनी सुखप्राप्ति की लालसा से प्रेरित होकर ही अपने से निर्बल प्राणियों के जीवन की आहुति देता है और
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१. अं०नि०१-२२०. २. मा-नि० २-२१४-२८ ।
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