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की भयानक सर्दी में भी अग्नि की आतापना नहीं लेते थे। सख्त गर्मी के मौसम में भी पंखे आदि से हवा नहीं करते थे । पृथ्वी पर चलते समय वनस्पति तथा पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना न हो जाय इसकी पूरी-पूरी सावधानी रखते हुए विहार करते थे ।
ऐसा आचरण सभी जैन तीर्थंकरों का होता है । आज भी तपश्चर्या तथा पाँच महाव्रतों के अभ्यास से कर्म क्षय किये जा सकते हैं । यह परम्परा आज भी जैनों में कायम है ।
केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् महावीर प्रभु विश्व में दुःख संतप्त प्राणियों के उद्धार के लिये सतत सर्वत्र घूमकर कल्याणकारी उपदेश देते रहे और ७२ वर्ष की आयु में उन्होंने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया।