SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. जीवननिर्वाह के लिये आवश्यक भोजन-पान के लिये, और परिवार के पालन-पोषण के लिये अनिवार्य रूप से होने वाली हिंसा मारम्भी हिसा है। २. गृहस्थ अपनी आजीविका चलाने के लिये कृषि, गोपालन, व्यापार आदि उद्योग करता है और उन उद्योगों में हिंसा की भावना न होने पर भी हिंसा होती है, वह उद्योगी हिंसा कहलाती है। ३. अपने प्राणों की रक्षा के लिये, कुटुम्ब-परिवार की रक्षा के लिये अथवा आक्रमणकारी शत्रुओं से देशादि की रक्षा के लिये की जाने वाली हिंसा विरोधी हिंसा है। ४. किसी निरपराधी प्राणी की जान बूझ कर मारने की भावना से हिंसा करना संकल्पी हिंसा है। इस चार प्रकार की हिंसा से गृहस्थ पहले व्रत में संकल्पी हिंसा का त्याग करता है और शेष तीन प्रकार की हिंसा में से यथाशक्ति त्याग करके अहिंसा व्रत का पालन करता है। १. अहिंसा व्रत का शुद्ध रूप से पालन करने के लिये इन पाँच दोषों से बचना चाहिये : १. किसी जीव को मारना-पीटना-त्रास देना। २. किसी का अंग-भंग करना, किसी को अपंग बनाना, विरूप करना। ३. किसी को बन्धन में डालना, यथा तोते-मैना आदि पक्षियों को पिंजरे में बन्द करना, कुत्ते आदि को रस्सी से बांध रखना। ऐसा करने से उन प्राणियों की स्वाधीनता नष्ट हो जाती है और उन्हें व्यथा पहुंचती है। ४. घोड़े, बैल, खच्चर, ऊँट, गधे आदि जानवरों पर उनके सामर्थ्य से अधिक बोझ लादना, नौकरों से अधिक काम लेना। ५. अपने आश्रित प्राणियों को समय पर भोजन-पानी न देना। इन उपर्युक्त समस्त दोषों का त्याग "अहिंसाणुवत" की भावना में आवश्यक है। - १. उपासकदशांग सूत्र १०१।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy