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सा अनेकार्थक बन जाते है तथा बनेकार्थक एकाक बन जाते हैं। बनेक शब्दों तथा लिपियों में एक दम परिवर्तन भी हो जाता है। जो शब्द आज किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है वह शब्द कालांतर में सर्वथा भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होने लगता है। सो आज से पच्चीस सी वर्ष पहले मगधदेश में बोली जाने वाली भाषा आज की भाषा से मेल कैसे पा सकती है । अतः सुज्ञ एवं निष्पक्ष विद्वानों को चाहिये कि वे किसी भी सूत्र पाठ का अर्थ करते समय देश, काल, परिस्थिति, आचार, विचार आदि को लक्ष्य में रखते हुए उन के अनुकल अर्थ करके अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दें। यही उन के लिये शोभाप्रद है। किन्तु प्राचीन काल के एकार्थक शब्दों को अनेकार्थक बना कर अर्थ का अनर्ष करने की कृपा न करें।
(२२) वर्तमान समय में विवादास्पद सत्रपाठों को निकालने का विचार भी ठीक प्रतीत नहीं होता। कारण यह है कि उस प्राचीन समय के सूत्रपाठी को निकाल देने अथवा उन शब्दों को बदल देने से जैनागमों की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता ही समाप्त हो जायगी। श्रमण भगवान महावीर स्वामी की मौजूदगी में गणधरों द्वारा संकलित किये गये ये प्राचीन आगम जब उन के ९८० वर्ष बाद देवद्धिगणि क्षमाश्रमण के नेतत्व में लिपिबद्ध कर पुस्तकारूढ किये गये थे उस समय इस हजार वर्ष के अन्तर में भाषा, शब्दों, अर्थों के अनेकविध परिवर्तन भी अवश्य हो चुके थे, उस समय लोग प्राचीन अर्थों को भूलने भी लगे थे, बाहर से आने वाली अनेक जातियों के भारत में आकर बसने तथा उन के शासनकाल में उनकी भाषा राज्यभाषा के रूप में प्रचार पा जाने से प्रत्येक भाषा में शब्दों का आदान-प्रदान होने से उस समय की भाषाओं में अनेक प्रकार के परिवर्तन भी हो चुके थे । आज की हिन्दी, गुजराती, बंगाली आदि भारतीय भाषाओं का जब हम बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी की भाषाओं से मेलान करते हैं तो इनके अन्तर का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। इसी प्रकार बाज से पच्चीस सौ वर्ष पहले "आम, आमगंध शब्द का अर्थ प्राण्यंग का कच्चा