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श्रमण भगवान महावीर स्वामी तो कषाय अज्ञानादि अठारह दोषों रहित
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सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे, इसलिये कदाचित इनके रोग में मांसाहार गुणकारी भी होता तो भी अहिमा के आदर्श उपदेशक तथा करुणा के अवतार श्रमण भगवान महावीर कभी भी ऐसे अभक्ष्य पदार्थ को स्वीकार करें यह बुद्धिगम्य तथा श्रद्धागम्य नही है । (५) उन्हें तो अपनी देह पर भी ममता नहीं थी । (६) उन्हें यह भी ज्ञान था कि इस रोग में मुर्गे का मांस घातक है । (७) उन्हे उनके रोग शमन के लिये वनस्पतिनिष्पन्न निर्दोष तथा प्रासु अनुकूल औषधि सुलभ प्राप्य भी थी । ऐसी परिस्थिति में श्रमण भगवान महावीर का मांसाहार ग्रहण करना कदापि संभव नहीं
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निग्गंठ नायपुत्त ( श्रमण भगवान् महावीर ) अपने सिद्धान्त के विरुद्ध जाने वाली, प्राणों की घातक, रोग की प्रकृति के प्रतिकूल तथा अभक्ष्य, महापापमूलक वस्तु अपने शिष्य सिंह मुनि द्वारा मंगा कर ग्रहण करे, यह बात समझदार व्यक्ति के गले कदापि नहीं उतर सकती ।
(१९) रेवती श्राविका जो धनाढ्य गृहस्थ की स्त्री थी, बहुत ही समझदार और बुद्धिमती पो और बारह व्रत धारिणी भी थी । ऐसी उत्कृष्ट श्राविका ऐसा उच्छिष्ट मांस कैसे राध सकती थी ? रांध कर बासी क्यों रखे ? फिर भगवान् के लिये दे। ये सब बातें कैसे संभव हो सकती हैं ?
जो स्वयं रांधे वह खातो भी होगी तब वह व्रतधारिणी कैसे हुई ? मांस खाने वाली रेवती ऐसे बासी माँस का आहार दान करने से देवगति प्राप्त करे तथा तीर्थकरनामकर्म उपार्जन करे, यह कैसे संभव हो सकता है ? शास्त्रकार तो " तृतीयॉग ठाणांग आगम" में कहते है कि इस सुपात्रदान के प्रभाव से रेवती श्राविका देवगति में गयी और आगामी चौवीसी में मनुष्यजन्म पाकर इस की आत्मा तीर्थंकर हो कर निर्वाण (मोक्ष) पद को प्राप्त करेगी । अतः इससे यह स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन 'पूर्वक बारह व्रत धारिणी श्राविका न तो कदापि प्राण्यंग मांस पका सकती