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________________ भगवान् महावीर स्वामी ने अपनी ४२ वर्ष की आयु में ईसा पूर्व ५५७ वर्ष में केवल ज्ञान प्राप्त कर अपने सिद्धान्तों का सार्वत्रिक प्रचार करना प्रारम्भ किया और ईसा पूर्व ५२७ वर्ष में निर्वाण (मोक्ष) पाने तक लगातार जो ३० वर्षो तक उपदेश दिया, उस उपदेश को उनके मुख्य शिष्यों-गणधरों ने सूत्र रूप में गुंथन किया और उन्हें द्वादशांगों - बारह अंगों (शास्त्रों) में संगृहीत कर अपनी शिष्य परम्परा में इनका के स्थ पठन-पाठन चालू रखा । भगवान् महावीर स्वामी के बाद इस द्वादशांगी के आधार से पूर्वविद् जैनाचार्यों ने समय-समय पर जिन शास्त्रों की रचना की वे आगम तथा प्रकरणों के नाम से प्रसिद्ध हुए। भगवान् महावीर स्वामी द्वारा उपदिष्ट द्वादशांगी अंग प्रविष्ट तथा उसके आधार से रचे गये शास्त्र ७. मज्ज १. मस्ज २. मद्य २. गरिष्ठ खाद्य पदार्थों में प्रथम नम्बर का खाद्य-पदार्थ जो धी शक्कर पीठी आदि से बनाया जाता है, उसमें केसर अथवा लाल चन्दन का रंग दिया जाता है । अनेकार्य संग्रह कोश हे० ४, १०१ भाव० स्नान करना, डूबना संधान जल साफ़ करना, मार्जन करना षड० प्राकृ० हे० ३. मृज अध्यापक कोसाम्बी ने "भगवान् बुद्ध" नामक पुस्तक में जैनागमों-दशवैकालिक तथा आचारांग के जिन सूत्र पाठों के उद्धरण देकर यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि जैन साधु प्राण्यंग मांस भक्षक थे वहाँ सब अर्थ वनस्पतिपरक हैं । उन सूत्र पाठों के पूर्वापर सम्बन्ध से यह बात स्पष्ट है । ( १५७ )
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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