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क्योंकि जैन तीर्थंकर तथा निग्रंय श्रमण को उसके अपने निमित्त तैयार किये गये आहार आदि लेने की मनाही है। इस बात को भगवान् महावीर ने स्वयं सोमिल ब्राह्मण के प्रश्न करने पर स्पप्ट कहा है कि निर्ग्रन्थश्रमण के निमित्त तैयार किया गया आहार अनेषणीय है इस लिये अभक्ष्य है, इसका आहार साध् न ले | अतः यह सदोष आहार होने के कारण भगवान् महावीर ने सिंह मुनि को लाने के लिए मना कर दिया । यह औषधि रेवती श्राविका ने भगवान् महावीर के लिये बनायी थी, भगवान् ने अपने केवलज्ञान द्वारा इस बात को जाना और कहा कि " अस्थि से अन्न पारियासिए मज्जार- कडए कुक्कड-मंसए तमाहराहि । एएवं अटठो ।" अर्थात् दूसरा जो रेवती ने अपने लिए मज्जार-कडए कुक्कुड-मसए" तैयार करके औषध रख छोड़ी है वह लाना ।
११ – “ मज्जार- कडए कुक्कुड मंसए" क्या था ? (क) मज्जार - मार्जार
'मज्जार' शब्द का संस्कृत पर्याय 'मार्जार' है । इसका अर्थ आजकल बिल्ली समझा जाता है।
का प्रयोग किया है और उसका अर्थ फल के साथ ही सम्बन्धित होने का द्योतक है । आगे आने वाला "अन्ने” शब्द भी पुल्लिङ्ग होने से इसी मत की पुष्टि करता है ।
दूसरी बात यह है कि मांस के साथ शरीर शब्द का प्रयोग नहीं होता । विपाक सूत्र मे मॉम का वर्णन है, मगर किसी जातिवाचक संज्ञा के साथ शरीर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है । किन्तु "वनस्पति काय" इस प्रकार " वनस्पति शरीर" का प्रयोग सर्वत्र जैनागमों में पाया जाता है ।
इससे भी यह स्पष्ट है कि यहां पर सरीरा का सम्बन्ध वनस्प ते के साथ ही है । इससे भी कबूतर के माँस का अर्थ सिद्ध नहीं होता । अत स्पष्ट है कि यहाँ पर दो साबुन छोटे पेठा फलों का मुरब्बा अर्थ ही ठीक है।" क्योंकि मुरब्बा साबुत फलों का अथवा उन के अन्दर के गूदे का डाला जाता है, जैसे साबुत आंबलों का मुरब्बा डाला जाता है ।