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आमिषं पले ॥ १३३० ॥ सन्दराकाररूपादौ सम्मोमेलोमलन्चयोः । ( अनेकार्थ)
अर्थ-आमिष--मांस, सुन्दराकार रूप आदि, सम्भोग, लोभ और रिशवत है।
'पल' शब्द का अर्थ आजकल एक तरह का तोल, काल विशेष और मांस के अर्थ में प्रसिद्ध है। परन्तु पहले इसके निम्न अर्थ समझे जाते थे
"पल: पलालो धान्यत्वक् तुषो बुसे कडंगराः" ।। ११८२ ॥ (अभिधानचितामणि)
अर्थात्- पल, पलल, धान्य का छिलका, तुष और कडंगर ये भूसे के नाम है।
'अज' नाम से आज बकरा और विष्णु का अर्थ समझा जाता है, किन्तु इसके अर्थ स्वर्ण माक्षिक, धातु, पुराने धान्य, जो उगने की शक्ति नष्ट कर चुके हों, होते है । (शालिग्राम औषव शब्द सागर ।
ये सब उपर्युक्त उद्धरण देने का आशय यह है कि मांस, मज्जा, अस्थि आदि शब्द जिस प्रकार प्राणियों के अगों के लिये आते है उमी प्रकार वनस्पति के अगो के लिये भी आते हैं। तथा जिन शब्दों का अर्थ हम प्राणी समझते हैं, उन शब्दों का प्रयोग वनस्पति और पक्वानों आदि खाद्य पदार्थों के लिये भी होता है। एमी परिस्थिति में लिखे गये शास्त्रों के विवरणों के अर्थनिर्णय मे विद्वानों द्वारा गल्ती होना असंभव नही है। यही कारण है कि वेदों, जैनागमो तथा बौद्धपिटकों में आने वाले तत्कालीन खाद्यपदार्थो के अर्थ में आने वाले शब्दो को प्रसंगों तथा परिस्थितियों का विचार किए विना अर्थ का अनर्थ करके आज कल के कतिपय विद्वानों ने अनेक प्रकार की विकृतियां घुसेड़ दी हैं।
अब हम इस विषय को लम्बा न करके यहां पर कुछ ऐसे शब्दों की सूचि देते हैं जिन के अर्थ वनस्पति और प्राणी दोनों होते हैं।