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________________ ( ११३ ) यह शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त होता है, जैसे कि: "पललं तिलचूर्णं स्यान्मांसं कर्दमभेवयोः ।" (वैजयन्ती) अर्थ- -- पलल यह तिलचूर्ण का नाम है तथा माँस और कीचड़ के भेद में भी यह व्यवहृत होता है । 'अनिमिष'- - शब्द से आजकल विद्वान केवल मत्स्य को ही समझ लेते हैं । परन्तु इसके पाँच अर्थ होते है । जैसे कि :--- " प्रथामरे सवे । अनिमेषोऽप्यनिमिषोऽप्यथ चांडालशिष्ययौः । स्यादन्तेवासीति + + +1" (वैजयन्ती) अर्थ - अनिमेष तथा अनिमिष शब्द देव, मत्स्य, चांडाल, शिष्य और अन्तेवासी (निकटवर्ती आज्ञाकारी मनुष्य) के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । 'पेशी' - - शब्द आजकल के विद्वानों के विचार में मांस के टुकड़ों अथवा मांस बल्ली के अर्थ में ही प्रचलित है । परन्तु वास्तव में इस के अनेक अर्थ होते हैं । सो ज्ञात करें- "पेशी मांस्यसिकोशयोः ! मण्डभेवे पलपिण्डे सुपक्वकणिकेऽपि च" ( अनेकार्थसंग्रह) अर्थ — पेशी, तलवार की म्यान, पक्वान्न के भेद, मांस के पिंड, घृत पक्व कणिका -- इतने पदार्थों के नाम हैं । 'शश ' -- शब्द सामान्य रूप से खरगोश के अर्थ में प्रसिद्ध है, परन्तु यह शब्द दूसरे भी अनेक पदार्थों का वाचक है, जैसे कि- “शशः पशौ ॥ ५५८ ॥ बोले लोध्रे नृभेदे च ।" (अनेकार्थ) अर्थ - - शश - खरगोश पशु, हीराबोल, लोध्र और पुरुष विशेष होता है । 'afer' शब्द का अर्थ वर्तमान समय में मांस किया जाता है; परन्तु इसके और भी अनेक अर्थ होते हैं, जैसे कि :
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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