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५-प्राणधारियों के मांस से मेदस् (मेदो, किनाट) धातु बनता है, वैसे वृक्षों के अंग-प्रत्यंगों से मेदस् सदृश स्राव निकलता है, उसे वनस्पति का मेदो धातु कहते हैं।
६-प्राणधारियों के शरीर में रहने वाले कठोर भाग को अस्थि कहते हैं, वैसे बनस्पतियों के शरीर में रहने वाले (गुठली-बीजों) को अस्थि । कहते हैं।
७-प्राणधारियों की अस्थियों में होने वाले स्निग्ध पदार्थ को मज्जा धातु कहते हैं, वैसे फलों की गुठलियों तथा बीजों मे से निकलने वाले स्निग्ध पदार्थ को वृक्ष की मज्जा कहते हैं।
८-प्राणधारियों के अंतिम धातु को रेतस् अथवा वीर्य आदि नाम प्राप्त हैं, वैसे वनस्पतियों में भी अमुक-अमुक प्रकार की शक्तियों रहती है। उनको शीतवीर्य, उष्णवीर्य, आदि नामो से कहते हैं।
९-प्राणधारियों के शरीर पर के रोम रोगटे और सिर पर के रोमबाल कहलाते हैं, वैसे ही वनस्पतियों के शरीर पर भी रोम तया बाल
अर्थ-खजूर का मांस (गूदा) और नारियल का मास (गिरी)। ५-मांसान्यस्य शकराणि कोनाट लावतत् स्थितम् (बृहदार०)
अर्थ-भीतर के सार भाग के टुकड़े इसका मांस और स्निग्ध जमा हुआ स्राव इस का किनाट (मेदोधातु) है।
६-अस्थिबोजानां शकृदालेप शाखिनां गर्तदाहो गोऽस्थि-कृतिः काले दोहवं च । (कौटिल्य अर्थशास्त्र पृ० ११८)
अर्थ-अस्थि (गुठली) और बीज वाले वृक्षों के बीजों को गोवर का लेप करके बोना चाहिये। ७-८-वातादमजा मधुरा, वृष्या तिक्ताऽनिलापहा। स्निग्बोष्णा कफन्नेष्टा, रक्तपित्तविकारिणाम् ॥१२५॥
(भावप्रकाश नि०) ___ अर्थ-बादाम की मज्जा (गिरी) मीठी, पुष्टि कारक, वायु को नाश करने वाली, रक्तपित्त के रोगियों को हानिकारक, स्निग्ध, उष्णवीर्य,