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भत्रिय था पर मात्र उमराव था। इसलिये अनेक जगह सिद्धार्थ और त्रिशला को भत्रिय और क्षत्रियानी कहा है। त्रिशला का देवी रूप में कहीं उल्लेख नहीं है, सिद्धार्थ जमींदार अथवा उमराव था। सत्ताधारी क्षत्रिय था। किन्तु राजघराने में लग्न होने से बड़ों केसाथ सम्बन्ध के कारण दूसरे सरदारों से अधिक लागवग वाला था। त्रिशला विदेह की राजकन्या थी, वह राजा चेटक की बहन थी। इसलिये वह विदेहा, विदेहदिन्ना के रूप में विख्यात थी। चेटक भी वैशाली का राजा नहीं था किन्त वैशाली का शासक उमराव मंडल का नेता था। वह जैन था इसलिए बौखों ने इसका उल्लेख नहीं किया। मात्र इतना ही नहीं किन्तु राजा चेटक के कारण वैशाली जैनधर्म का मुख्य केन्द्र बन गया था। इसलिये बौद्धों ने वैशाली को पाखंडियों का एक मठरूप से वर्णन किया है।"
१. अतः डा. जैकोवी मानता है कि१. वैशाली का कोटिग्राम ही कंडग्राम- क्षत्रियकुंड है।
२. यह कुडंग्राम महानगर नहीं था परन्तु यात्रियों का, सार्थवाहों का सामान्य विश्राम-स्थान था।
३. कोटिग्राम, कुंडग्राम और आंतिक ये ग्राम ज्ञात क्षत्रियों के थे।
४. कंडग्राम वैशाली का एक मुहल्ला अथवा ग्राम था जहां महावीर का जन्म हुआ था।
५. भगवान महावीर वैशाली के निवासी थे। ६. महावीर का पिता सिद्धार्थ राजा नहीं था। वह क्षत्रिय उमराव था। ७.त्रिशला का देवी के रूप में उल्लेख नहीं हुआं अतः वह रानी नहीं थी। ८. चेटक राजा नहीं था- वैशाली के उमरावमंडल का नेता था।
९. चेटक जैन था। उसके प्रभाव से वैशाली जैनधर्म का मुख्य केन्द्र बन गया था इसलिये बौद्धों ने राजा चेटक का उल्लेख नहीं किया। वे वैशाली को पाखंडियों का एक मठ कहा।
म.हानले ने- चंडका प्राकृत व्याकरण और जैनों का उपासकदशांग मूत्र का अंग्रेजी अनुवाद किया है और जैन पट्टावलियां प्रकाशित की हैं। ई. म. १८१८ में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की वार्षिक सभा में प्रधानपद मे उमने जो भाषण दिया था उसका सारांश यह है कि___ "महावीर जैनधर्म के प्रवर्तक हैं। उनका मूलनाम वर्धमान था। बौद्ध उन्हें नातपुत्त तथा ज्ञातक्षत्रियों के राजकुमार बतलाते हैं। वे गजकल में जन्मे थे