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विदेशी विद्वानों की मान्यताएं कुछ पाश्चिमात्य विदेशी विद्वानों की मान्यताएं
अत्रियकंड कहां पर है? इस केलिये कुछ आधुनिक पाश्चिमात्य संशोधकों का मत है कि विदेह जनपद में वैशाली नगरी वर्तमान काल में जिसका नाम
सड़ है वह अथवा उसका एक मुहल्ला यही वास्तव में क्षत्रियकंड भगवान महावीर का जन्मस्थान है।
सर्वप्रथम जर्मन स्कालर डा. हरमन जैकोबी तथा जर्मन डा ए. एफ.आर हानले ने इन नयी मान्यताओं को जन्म दिया। पश्चात् उनका अनुकरण कुछ भारतीय विद्वानों ने भी किया। इस नये संशोधन के कारण यह मत बहत विश्वासपात्र बन गया है। अब इसके विषय में जो उनके विचार और तर्क हैं प्रथम उन पर विचार करें। .
च. हार्मन चैकोबी ने (Secred books of the East) पूर्व देश की पवित्र पुस्तकें इस नाम की ग्रंथ माला के २२वें भाग में 'आचारांगसूत्र एवं कल्पसूत्र का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है। इसकी प्रस्तावना में लिखा है
"महावीर कुंडपुर के राजा सिद्धार्थ के पुत्र थे। कुंडपुरग्राम को जैन बड़ा नगर और सिद्धार्थ को प्रतापी राजा मानते हैं। ये वर्णन अतिशयपूर्ण है। बाचारांगसूत्र में कुंडग्राम को सन्निवेश बतलाया है। टीकाकार ने सन्निवेश का बर्ष यात्रियों का स्थान माना है इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह सामान्य स्थान होगा। आचारांग सूत्र से ज्ञात होता है कि कंडग्राम विदेह जनपद में था। बौखग्रंथ महावग्ग ने लिखा है कि गौतमबुद्ध जब कोटिग्राम पधारे तब वैशाली के लिच्छवी तथा आम्रपाली वैश्या उन्हें वन्दन करने आए थे। बद्ध वहां से चल कर मांतिको के पक्के मकान में जाकर उतरे। आम्रपाली ने अपने निकट का अपना उद्यान बौद्धसंघ को भेंट किया। बुद्ध वहां से वैशाली गये, जहां बैनसिंहसेनापति को बरधर्मी बनाया। इससे ये कोटिग्राम, कंडग्राम और जातिकबासी मात-क्षत्रिय लगते है। सिंह भी जैन था। इसलिये मान सकते हैं कि कंडग्राम विदेह की राजधानी वैशाली का एक गांव अथवा मुहल्ला यां। इसी कारण से सूत्रकृतांग में महावीर को वैशालिक कहा है। टीकाकार ने इसके अनेक अर्थ बतलाये हैं उनपर बहुत ध्यान देना उचित नहीं। वैशालीय का मई मिली-निकासी होता है। क्योंकि कंडसाम वैशाली का एक महल्ला है, इसलिये शानीक भगवान महावीर का वास्तविक नाम सिद्ध होता है। सिद्धार्थ राजा नहीं