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महावीर और ज्योतिष
द्वितीय गृह- धनेश क्योंकि तुला राशि का होकर दशम स्थान कार्यक्षेत्र में जा बैठा है, 'राजकुलोत्पन्न हो कर भी क्योंकि शनि उच्च का तुला राशि का है। अतः इससे जातक का राज्ययोग दीख पड़ रहा है। मतलब यह है कि ऐसा जातक राजघराने में जन्म लेकर भी राजसत्ता का उपयोग नहीं कर सकता।
तृतीय गृह- वृहस्पति तीसरे स्थान का स्वामी होकर भी क्योंकि दशम स्थान में उच्चक्षेत्री होकर बैठा है और अपने घर को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। इसलिये इस जातक का मान-सम्मान अक्षुण्ण रहता है। यह व्यक्ति अपने क्षेत्र में सूर्य के समान चमकता है।
तीसरे स्थान का स्वामी गुरु उच्च राशि का होकर केन्द्र में स्थित है। इस के हिसाब से चार बहिन-भाइयों के योग बन रहे हैं। लेकिन राहु का संयोग होने से एक बहिन व एक भाई ही होंगे। बहिन का योग इस लिये बन रहा है कि चंद्रमा की तृतीय भाव पर पूर्ण दृष्टि है और ११ वें स्थान का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है ऐसी हालत में इस जातक के सहोदर या सहोदरा अग्रज ही हो सकते हैं कनिष्ठ नहीं ।
चतुर्थ गृह- उच्च का सूर्य मेष राशि का है साथ ही बुद्ध का संयोग भी है तथा मंगल की पूर्ण दृष्टि है। ऐसा जातक स्वाभिमानी, महत्वाकांक्षी, उदारवृत्ति वाला, गंभीर प्रकृति का तथा स्वावलंबी व्यक्ति होता है। सूर्य व बुद्ध की युति के परिणामस्वरूप ऐसा जातक विचारवान, संशोधक तथा सुभाषी विद्वान होता है।
पंचम गृह - पंचम स्थान में वृष राशि शुक्र के स्वगृही होने के कारण इस ऐश्वर्यशाली, सुदर्शन, सात्विक वृत्तिक, सदाचारी जातक की बुद्धि में वैराग्यभाव अबोधावस्था पार करते ही आजाना चाहिए। इस जातक ने स्वजनों के सांसारिक मोहपाश से स्वयं को निस्पृह रखा होगा। यह जातक आचार्य (तीर्थंकर) पद को प्राप्त करने वाला होता है। बुद्ध राशि के होने से इस के उत्कर्ष - काल का प्रारंभ २८ वें वर्ष से होता है। (घर में विरक्त अवस्था का प्रारंभ)। पांचवें घर में क्योंकि शुक्र अपने घर का स्वामी बन बैठा है, अतः इस जातक के संतान के नाम पर केवल पुत्री ही होती है। (प्रियदर्शना पुत्री )। ऐसा जातक पुत्र सुख से विहीन होता है। "सुतेश यस्य पंचमे पुत्र तस्य न जीवति" ( लोमश संहिता) |
षष्टम गृह- बुद्ध ग्रह क्योंकि नपुंसक है अतः इस जातक में काम क्रीड़ाओं, रति क्रियाओं या प्रणय व्यापार के प्रति विशेष उत्साह नहीं होता। कामदेव की बजाय महादेव इस का आदर्श होता है। जातक का शत्रु पक्ष निर्बल होता है। इस का विरोध नगन्य होता है। किं बहुना जातक अजातशत्रु होता है।