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भत्रियकुंड
२. सर्व- उच्च तथा मेष राशि का है। अतः जातक आत्मबली, स्वाभिमानी, महत्वाकांक्षी, गंभीर, तथा उदार-वृत्ति वाला होता है। ...हस्पति- क्योंकि उच्च का और कर्क राशि का है इसलिये ऐसा जातक सदाचारी, विद्वान, सत्यवक्ता, महायशस्वी, समदृष्टि, सुधारक, योगी, लोकमान्य और नेतृत्व करने वाला होता है। मुखमंडल आभायुक्त, तेजोमय एवं प्रभावोत्पादक होता है।
४. शुक्र- क्योंकि स्वग्रही और पंचमभाव में है और वृष का है अतः जातक सुंदर, ऐश्वर्यशाली, दानी तथा सात्विक वृत्तिवाला होता है। साथ ही परोपकारी, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, त्याग भावना.बाला, संगीत प्रेमी और भाग्यवान होता है। यह जातक स्वतंत्र प्रकृति का विचारक होता है।
५. शनि- क्योंकि उच्च क्षेत्रीय होकर दशमगृह में बैठा है अतः यह जातक सुभाषी, नेतृत्व प्रदान करने में समर्थ, उन्नतिशील, यशस्वी होता है। ऐसा जातक जागीदारों का राजा होता है।
६. राह- क्योंकि कर्क राशि का है। अतः यह जातक उदार एवं इन्द्रीय-निग्रही होता है। दाम्पत्य जीवन को अल्पकाल तक भोगता है।
७. केतु- क्योंकि मकर राशि का है इसलिये जातक प्रवासी, परिश्रमी, पराक्रमी, तेजस्वी और मोक्षमार्गी होता है।
८. दुख- क्योंकि मेष राशि का है, फलतः ऐसा जातक इकहरे लेकिन सुगठित अंगों वाला, सत्यवक्ता, समृद्ध, सम्पन्न एवं ऐश्वर्यशाली होता है।
९. चन- क्योंकि कन्या राशि का होकर नवम स्थान पर बैठा है अतः यह जातक अल्प संतति वाला, दानी स्वभाव वाला, गंभीर प्रकृत्ति का तथा सदढ़ देह-यष्ठिवाला, धार्मिक वृत्ति का होता है।
द्वादश गृहों का विवेचन प्रथम गृह- मंगल के कारण गर्भकाल में किसी गड़बड़ी (गर्भ परावर्तन) की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। मंगल और केत की यति के फलस्वरूप परोपकारी, मोक्षमार्ग प्रदर्शक होता है। मंगल उच्चराशी का है इसलिये जातक रजोगण नाशक तथा भ्रमणशील होता है, ख्यातिप्राप्त नेता होता है। केतु के प्रभाव से विश्ववंद्य, परमपूज्य, बुद्धि व भाग्य की खान होता है। जिस के दर्शनार्थ लोग चल कर आयें ऐसा नामवर बुलन्द-मर्तबा होता है। जती-सती एकांतप्रिय होता है।