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क्षत्रियकुंड
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भगवान महावीर का चतुर्विध संघ परिवार
भगवान महावीर के निर्वाण के समय इन्द्रभूति गौतम आदि १४०००. उत्कृष्ट साधु थे। चन्दनबाला आदि ३६००० उत्कृष्ट साध्वियां थीं। शंख शतक आदि १५९००० उत्कृष्ट श्रावकों की संख्या थी । सुलसा आदि ३१८००० उत्कृष्ट श्राविकाओं की संख्या थी । ३०० चौदह पूर्वधारी मुनि थे । अतिशयलब्धि-धारी उत्कृष्ट अवधिज्ञानी १३०० मुनि थे। ७०० केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट संख्या थी । उत्कृष्ट ७०० वैक्रिय-लब्धि वाले मुनियों की संख्या थी । ७०० उत्कृष्ट विपुलमति मनः पर्यव ज्ञानियों की संख्या थी । ४०० उत्कृष्ट वादियों की संख्या थी । ७०० मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया। १४०० साध्वियों ने मोक्ष प्राप्त किया। प्रभु के ८०० मुनि अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए जो आगामी जन्म में मोक्ष प्राप्त करेंगे। इस प्रकार भगवान महावीर ३० वर्ष गृहस्थावस्था में रहे। साढ़े बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में मुनिधर्म पाल कर बाद में केवलज्ञान प्राग्न किया। कुछ काल कम ३० वर्ष केवली पर्याय में रह कर समुच्चय ४२ वर्ष तक चरित्र पाल कर ७२ वर्ष आयु व्यतीत कर सर्वकर्मों को क्षय कर जन्म, जरा, मृत्यु से सदा केलिय रहित होकर चौविहार छठ (दो उपवास) के तप के साथ पद्मासन में शैलेशीकरण में बैठे हुए ५२७ ई. पू. कार्तिक अमावस को पावा में निर्वाण पायें।
ज्योतिषशास्त्र और वर्धमान महावीर
जैन परम्परा के मान्य २४ तीर्थकरों में से २२ तीर्थंकर सूर्य वंशीय क्षत्रिय राजघरानों में हुए हैं और शेष २ चन्द्रवंश के क्षत्रिय राजघरानों में हुए हैं।
महावीर स्वामी ने अपने पूर्ववर्ती २३ तीर्थंकरों के उपदेशों का अवगुंठन करके और समयानुकूल संशोधन करके जैन- विचार - धारा को ऐतिहासिक महत्त्व दिया था। आप शाक्य मुनि गौतम के समकालीन थे। जैन परम्परा में जिसे श्वेतांबर साहित्य कहा जाता है उस में महावीर स्वामी के जीवन संबंध में दिगम्बर साहित्य की अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक सामग्री है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार इन के कोई भाई-बहन, पत्नी, सन्तान, चाचा आदि नहीं थे। श्वेतांबर परंपरा इनके पारिवारिक ऐतिहासिक तथ्यों को छिपाती नहीं है बल्कि स्वीकार करती है। क्योंकि पारिवारिक स्थितियों में महावीर की महानता में कोई अन्तर नहीं आता। आपकी पारिवारिक स्थिति इस प्रकार है