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पस्तक प्रत्येक जैन परिवार में अवश्य पहुंचनी चाहिए ताकि इसके पढ़ने से वैशाली की मान्यता उनकी मन और मस्तिष्क से निकल जावे और क्षत्रियकंड ही भगवान महावीर के जन्मस्थानं उसके आस्था कायम हो जावे। १३. इस पुस्तक की पांडुलिपि छह-सात-विद्वानों को भेजकर अद्योपांत परीक्षण करवा लिया है। सब ने इस की अनमोदना और प्रशंसा की है। उनका आभार मानता ह। शाहदरा दिल्ली दिनांक १५.५.१९८७ ई.
हीरालाल दुग्गड़