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क्षत्रियकंड वेगसगय का प्रायः सारा क्षेत्र श्रीनगर (पटना का एक प्राचीन.नाम) मुक्ति के अंतर्गत था। मुंगेरमंडल के जमुईअनुमंडल का प्रायः सारा क्षेत्र प्राचीन जैनस्थानों, स्मारकों और अवशेषों से भरा पड़ा है। सिकन्दरा अंचल के जनसंघडीह (जैनसंघडीह), जैनडीह, आचारजडीह कुमारकुंड, माहना (माहण-ब्राह्मणकंडपुर), परसंडा, रिसडीह (ऋषभदत्त डीह) महादेव सिमरिया अनेक ग्राम प्राचीन जैनक्षेत्र हैं जैनडीह, जैनसंघडीह, आचार्यडीह आदि ग्रामों के नाम से ही स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में कभी जैनों के संघ उनके आचार्य और धर्मस्थान विद्यमान थे। इसी अंचल में भगवान महावीर की जन्मभूमि कंडग्राम या क्षत्रियकुंडनगर भी है। जहां भगवान के च्यवन (गर्भावतरण), जन्म, दीक्षाकल्याणक हुए हैं। उसके आसपास के कई ग्रामों ने प्राचीन जैनमंदिर थे। जिनका उल्लेख जैनयात्रीसंघों ने स्वलिखित तीर्थमालाओं में किया है। लच्छुआड़ के पूर्व महादेव-सिमरिया में पांच जैनमंदिर थे। जिनकी प्रतिमाएं लोगों ने कएं में डाल दी थीं। परसंडा (सिकन्दरा अंचल) में एक जिनप्रतिमा थी जिसे अन्य नाम से वहां की जनता पजती है। सिकंदरा से पांच मील की दूरी पर भगवान महावीर की एक विशाल मूर्ति है। जिसकी हथेली पर चक्र का चिन्ह है। इसके अतिरिक्त कुमारग्राम, बोब, मसोज, आदि अन्य ग्रामों में भी जिनप्रतिमाएं पाये जाने की सूचनाएं मिलती रहती हैं। जमुईअनुमंडल में इन्दपे, गृद्धेश्वर और महादेव-सिमरिया में छोटे आकार की कई जैनप्रतिमाएं हैं। इन्दपेगढ़ के ध्वंसावशेष के समीप एक शिलापट्ट भी है जिस पर चौबीस तीर्थंकरों की कई आकार प्रकार की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।
महादेव-सिमरिया में जिन पांच जैनमंदिरों का जैनयात्रियों की तीर्थमालाओं में उल्लेख पाया जाता है वे संभवतः वर्तमान में शिवमंदिर और उसके संलग्न मंदिर हैं और उस समूह के प्रमुख मंदिरके नाम पर उस ग्राम का नाम महादेव-सिमरिया प्रसिद्ध हो गया होगा। यह ग्रोम जमई से सात मील पश्चिम में जमई सिकंदरा जनपथ के समीप है। यहां छह देवालयों का एक समूह है और यह स्थान तीन ओर से विशाल पुष्करणियों से घिरा है। इस समूह के मुख्य मंदिर में शिवलिंग स्थापित है और शेष मंदिरों में लघु आकार की जैन एवं अन्य प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं। अनुश्रुति से स्पष्ट है कि सिमरिया के जैनतीर्थ पर शैवतीर्थ के आरोपण का कार्य गिडोर के राजा पूर्णमल ने किया और इसका औचित्य सिद्ध करने के लिये स्वप्न में शिव का आदेश प्राप्त करने की कथा घड़ी गई। इस क्षेत्र में कुछ अन्य बैनस्थानों को विनष्ट करने में इस राजवंश का ही योगदान रहा हो तो आश्चर्य नहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मगध