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त्रियकंड मकर वैशाली वाली गंडकी नदी और क्षत्रियकंड की पहाड़ी नदीये दोनों एक नहीं हैं। इन दोनों के बहने की दिशाएं भी अलग-अलग थीं। गंडकी द्वारा वैशाली में वाणिज्यग्राम जाने के लिए एक ही जलमार्ग था। एवं क्षत्रियकड से कमारग्राम जाने केलिये जल-स्थल दो मार्ग थे।
जैसे गंडकी नदी और पहाड़ी नदी जुदा हैं वैमे वैशाली और कंडपुर भी जुदा-जुदा नगर थे। वैशाली का गजा चेटक और कंडपुर का गजा सिद्धार्थ परस्पर साला बहनोई थे। दोनों के राज्य भी जदा जदा थे। चेटक का गज्य गंगा के उत्तर विदेह में था और सिद्धार्थ का गज्य मगध जनपद में गंगा नदी के दक्षिण में था।
कंडपुर और वैशाली के भौगोलिक परिपेक्ष में आगम में उल्लिखित नगगे, ग्रामों, नदियों का मेल नहीं खाता एवं दोनों के ग्रामों नगगें आदि के अन्तर और दिशाओं में भी मेल नहीं खाता। अतः आनिक (नदियागांव) क्षत्रियकंड नहीं हो सकता।
क्षत्रियकंड और वसुकंड वसकह क्षत्रियकंड नहीं है और कमारग्राम भी नहीं है। यदि कामनछपगगाची को कमारग्राम मान लिया जाय तो दिशा फेर हैं। वमकह के वायव्य में कोलआगांव है। अतः पहले कमारग्राम चाहिए और बाद में कोलआ। कामनपगगाठी वमकड के दक्षिण में है यह दिशा उल्टी पहनी है। वमकंड और कमारग्राम के बीच में नदी पड़ती है। कोल्लाग के बाद मोगक और अस्थिग्राम भी नहीं है। आ. विजयेन्द्र रि बौद्ध दिग्र्धानकाय में बतलाए हा वैशाली. भडग्राम. हस्थिग्राम एव जम्बग्राम में में हस्थिग्राम को अस्थिग्राम मानते हैं। जो वास्तव में शब्द 'भ्रममात्र है। भगवान महावीर अम्थिग्राम पधारे और बदब हस्निग्राम यानि हाथीस्वान गए। इन दोनों को एक मान लेना मात्र कल्पना नहीं नो और क्या है।
दसरी बात यह है कि आचार्य श्री क्तिमगम के आधार से पश्चिम में गडकी नदी तक ही विदह मानत है एमा मानने पर भी हाथीखाल को विदेह के अन्नगंन मानन है। यह आश्चर्य की बात है। इस प्रकार चागें नग्फ मे विचार करे तो वमकंड को प्राचीन त्रियकर के स्थान पर मानना प्रमाण मंगन नहीं
है।