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राजधानी बात्रिय कुंडपुर एक बड़ा जाहोजलाली वाला महानगर था। भगवान महावीर के स्वप्न जन्म, वर्षीदान, दीक्षा आदि महोत्सवों के वर्णन भी कंडपुर को बड़े महानगरों के रूप में समर्थन करते हैं। .
. . . . कंडपुरनगर के राज्यपरिवार के वर्णन में नरेन्द्र, दंडनायक, युवराज, सेनापति, कोतवाल, मंत्री, महामंत्री, दूत, द्वारपाल आदि बीस प्रकार के पदाधिकारियों के कल्पसूत्र में वर्णन से स्पष्ट है कि कुंडपुर को राजधानी के रूप में पूरा समर्थन मिलता है। (हम इस का वर्णन विस्तार पूर्वक पहले कर आए हैं)
जैसे वैशाली लिच्छिवियों (वज्जियों) का राजधानी थी, वैसे ही कैंडपुर भी एक महानगर और मातृक्षत्रियों की राजधानी था।
१. कुडपुर किस स्थान में था, शास्त्रों में इस का वर्णन नहीं मिलता। किन्तु भगवान महावीर के विहार में ब्राह्मणकंडग्राम का शास्त्रों में वर्णन आता है। यदि यह वही भगवान महावीर वाला ब्राह्मणकुंडपुर नगर हो तो निश्चय है कि कुंडपुर नगर गंगानदी के दक्षिण में था। क्योंकि भगवान राजगृही से विहार करते हुए कोल्लाग, स्वर्णखल, और ब्राह्मकुंडग्राम होकर चंपा पधारे थे और उन्होंने वहां चौमासा किया था। इसका उल्लेख हम आवश्यक नियुक्ति गाथा ७४-७५ मूलपाठ से कर आए हैं। इस संदर्भ में मान सकते हैं कि कंडपर गंगानदी के दक्षिण में राजगृही और चंपा के बीच में था। हम यह भी स्पष्ट कर आए हैं कि कंडपुर एक स्वतंत्र राज्य था। उसके वायव्य में मगधराज्य उत्तर में मेदागिरि का प्रदेश और दक्षिण में मलय राज्य था।
२. हम विस्तार से लिख आए हैं कि कुंडपुरनगर पहाड़ी-घाटियों पर था। भगवान के गर्भावस्था में दोहलों की पूर्ति, जन्मोत्सव, क्रीड़ास्थल, दीक्षा; जमाली, प्रियदर्शना, ऋषभदत्त ब्राहमण दम्पत्ति की दीक्षाएं सभी इन्हीं घाटियों पर हुए थे और उन घटनाओं की स्मृति में उन घाटियों के नाम की दिक्करानी आदि आज भी इस क्षेत्र के आबाल-वृद्धों के मुख से मुखरित होते हैं। पद्यपि इन घाटियों के ये नामकरण क्यों हुए? इसे वे भूल चुके हैं। ___ ३. ब्राह्मणकुंड के निकट बहुशालचैत्य उद्यान था जहां ऋषभदत्त आदि की दीक्षाएं हई थीं। आज भी इस क्षेत्र में शाल-आंवला आदि वक्षों की बहतायत है। ये वृक्ष ऊंची पहाड़ियों पर ही पाए जाते हैं।
४. क्षत्रियकुंड से कुमारग्राम जाने के लिए जल-स्थल दो मार्ग थे ऐसी स्थिति पहाड़ी जमीन होने के कारण ही हो सकती है। क्योंकि नदियां पहाड़ों पर बल (मोड़) खाती हुई चलती हैं।