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________________ भौगोलिक तर्क १०६ जैनस्तूप का पता लगाया और जब तक एक कथा शीर्षक उनका निबन्ध प्रकाशित नहीं हुआ तब तक ऐसी ही भांति चलती रही ई. सं. १९०१ में जब उनका यह निबन्ध प्रकाशित हुआ तब मालूम हुआ कि बौद्धों के समान बौद्धकाल से भी पहले जैनों के घेरे और स्तूप बहुलता से मौजूद थे। भारतीय पुरातात्विक विद्वान दृढ़ता के साथ वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान शायद इसलिए भी मानने लगे हैं कि इस क्षेत्र में कुछ जैनतीर्थंकरों की खंडित अखंडित मूर्तियां प्राप्त हुई है परन्तु सर्वश्री अजयकुमार सिन्हा रजिस्टरिंग पदाधिकारी पुरातत्व विभाग भागलपुर लिखते हैं कि पुरातत्ववेत्ता होने के नाते मैंने वैशाली, कुंडलपुर और लच्छु आड़ इन तीनों स्थानों का सर्वेक्षण किया है। लच्छुआड़ और उसके आस-पास के क्षेत्रों में भगवान महावीर की काले पाषाण की बैठी हुई कुछ आकर्षक मूर्तिया देखी हैं। जिनपर लेख अंकित हैं और काफी मूर्तियां जिनपर लेख अंकित नहीं हैं प्राचीनकाल की हैं वह जो मन्दिरों में पधारी हुई हैं और उनकी पूजा अर्चा होती है। निश्चय ही विक्रम की ९वीं शताब्दी की हैं तथा बहुत ही विशाल हैं। कुछ इन मे भी प्राचीन हैं। ये सब बाते इस स्थान को जन्मस्थान मानने की पुष्टि करनी हैं। परन्तु कोई भी ऐसा प्राचीन अवेशष वैशाली में नहीं पाया गया। ध्यानीय है कि परम्परायें मशकल से खतम हुआ करती हैं। प्राचीनकाल में ही इस परम्परा ने सदरवर्ती यात्रियों को लच्छु आड़ की ओर आकर्षित किया है। परन्त वैशाली में भगवान महावीर का जन्मस्थान मान कर वहां कभी भी कोई जैनयात्रीमय या जैनयात्री नही गया और न ही आजतक इसका उल्लेख या विवरण ही मिल पाया है। क्षत्रियकुंड की प्राचीन और अर्वाचीन मान्यताओं पर विचार ६-७ भौगोलिक और तर्क (GEOGRAPHICALLY & LOGICALLY) आर्यदेश और क्षत्रियकुंडनगर
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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