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बैन शामन में नप निर्माण इसरी बात यह है कि एक अथवा अनेक तीर्थकरों की प्राचीन अथवा अर्वाचीन बडित या बखंडित मूर्तियां मिल भी जाती तो जरूरी नहीं है कि इस बाधार से वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानलिया जाय। जहां जिसके अनुयायी होते हैं वहां वे लोग अपने ईष्टदेव की पूजा-अर्चा-भक्ति केलिये उनके स्मारक, मंदिर, प्रतिमाएं, स्थापित करलेते हैं। इसलिये जां जिस तीर्थकर का स्मारक, मंदिर, प्रतिमा हो उसे उस तीर्थंकर का जन्मस्थान होना ही है ऐसी मान्यता प्रांत और खोखली है। (२) वैशाली में जो सैकडों मुद्राए व मुहरें मिली हैं उनमें जैनों संबंधी एक भी नहीं है। अतः जन्मस्थान की पुष्टि केलिये इनका कोई उपयोग नहीं है (३) वैशाली में कोलुआ, बनिया और वसाढएकही दिशा में हैं। और एक-एक मील की दूरी पर पक्तिबद्ध होने से भी कोलुआ अथवा वसाह को क्षत्रियकंड की कल्पना करलेने से भी उन्हें भगवान महावीर का जन्मस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि प्राचीन जैनागम शास्त्रों की मान्यता इन्हें एक ही दिशा में मानना स्वीकार नहीं करती। हम पहले भी विस्तार से लिख आये हैं कि वैशालीगड़ नदी के पूर्वी तट पर था एवं बनिया (वाणिज्यग्राम) और कोलआ (कोल्लाग) गडकी नदी के पश्चिमी तट पर थे अतः ये उस समय की भौगोलिक मान्यता के विरोध में जाते हैं (४) वैशाली क्षेत्र में आम और केले के वृक्षों की उपज बहत संख्या में थी इस क्षेत्र में शाल, आंवला, आदि के उपज का कोई उल्लेख नहीं है। भगवान महावीर के दीक्षा लेने के बाद दीक्षा स्थान से चलकर जहां-जहां उनका विहार हुआ वहां वहां शाल, आंवला आदि वृक्षों की बहतायत थी। बहशालादि उद्यानों का जिक्र बार-बार आता है अतः इससे भी वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने की पष्टि नहीं होती (५) कहीं पर जैनर्मियों की अधिकता होने से ही उस स्थान को तीर्थकर का जन्मस्थान नहीं माना जा सकता। क्योंकि जैन धर्मानुयायी प्राचीनकाल से वर्तमान तक यत्र-तत्र-सर्वत्र देश-विदेश के नगरों, ग्रामों में अधिक संख्या में भी रहते आये हैं और रहेंगे अत इस आधार से भी भगवान महावीर का जन्मस्थान वैशाली मान लेना यक्तिसंगत नहीं है। इसपर हम विस्तार से लिख आये हैं (६) विदेह आदि जनपदो में जैनों के बहुत संख्या में स्तम्भ,स्तृप आदि थे जिन्हें विदेशी बौद्धयात्रियों ने बौद्धों के मानकर अपनी यात्राविवरणों में लिखकर बौद्धधर्मकी छाप लगा दी है और इसी को आधार मानकर इतिहासकार इस प्रांत मान्यता को पष्ट करते जा रहे हैं यह खेद का विषय है।
जैनशासन में स्तूपों का निर्माण