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क्षत्रियकुंड
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गया है। वह भी अर्द्धमागधी से भिन्न है। दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों की प्राकृत भाषा भी अर्द्धमागधी नहीं है। अतः यह प्रमाण हमें मानने केलिये बाध्य करते
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कि अर्द्धमागधी सारे भारत की भाषा नहीं थी अपितु अर्द्धमागधी मगध और इसके निकटवर्ती प्रदेश की भाषा थी। भगवान महावीर की यह मातृभाषा होने से "" उन्होंने इसी भाषा में उपदेश करने का निर्णय लिया कि जनता को मातृभाषा समझने में सुविधा रहेगी।
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(ARCHAEOLOGICAL)
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५. पुरातत्त्व वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान माननेवाले अपनी बात की पुष्टि केलिये कुछ पुरातात्विक प्रमाण भी देते हैं जो इस प्रकार हैं। ई. म १९०३ -४ डा. ब्लाक की देख-रेख में यह खुदाई का काम हुआ। बाद में १९१३-१४ में डा. स्पूनर ने यहां खुदाई शुरू की। विशालगढ़ की खुदाई में बहुत सी मुहरें और पदार्थ मिले जिससे वैशाली की स्थिति पूर्णरूप से सुदृढ़ हो गयी और अब तो यहां बुद्ध की अस्थियां भी मिल गयी हैं अतः इसके बारे में किंचित भी शंका नहीं की जा सकती। इन अस्थियों की चर्चा बौद्ध चीनीयात्री ह्वेनसांग ने भी की हैं। उसके यात्रा विवरण के आधार पर पुरातत्ववेत्ता वर्षो में ढूंढ निकालने के प्रयास में थे। यह स्थान अब तक राजा विशालगढ़ के नॉम मे प्रसिद्ध है यह आयताकार है और ईंटों से भरा है इसकी परिधि लगभग एक मील है। डा. ब्लाख के अनुसार यह गढ़ उत्तर की ओर ७५७ फुट दक्षिण की ओ ७८० फुट पूर्व की ओर १६५५ फुट और पश्चिम की ओर १६५० फट मम्बी है। पास के खेतों की अपेक्षा खंडहरों की ऊंचाई लगभग आठ फट है। क्षण की छोड़ कर इसके तीनों ओर खाई है। इस समय यह खाई १२५ फट चौ किन्तु कनिंघम ने इसकी चौड़ाई २०० फुट लिखी है इससे महज ही अनमान लगाया जा सकता है कि इस किले के तीन ओर खाई थी। वर्षा और जाड़ों क का रास्ता दक्षिण दिशा से रहा होगा। गढ़ से पश्चिम की ओर ५२ (बावन) पोखरों के उत्तरी भोटे पर एक छोटा सा आधुनिक मन्दिर है वहां ब बोधिसत्व, विष्णु हर, गोरी गणेश, सप्तमातृका तथा जैन तीर्थकर की एक खंडित मध्यकालीन प्रतिमा प्राप्त हुई है। वह भी महावीर अथवा चेटक के. कल की नहीं इनसे १००० वर्ष बाद की है। इन मनियों के अतिरिक्त यहीं में जो अत्यन्त महत्वपूर्ण चीजें मिली हैं वे राजाओं गनियों तथा अन्य अधिकारिय के नाम सहित सैकड़ों मुद्राए हैं इनमें से कुछ महाओं पर लेख उत्कीर्ण है। - BI
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