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राजानन्दवर्धन समाप्त झे.जाता और वह स्वयं भी मारा जाता या अपना निवासस्थान छोड़कर कहीं बन्याबला आता। न.नन्दीवर्धन रहतान क्षत्रियकंड रहता। यह भी अपने राज्य से शव धो बैठता। परन्तु वैशाली ध्वंस हो जाने पर भी सजा नन्दीवर्धन और उसका राज्य सुरक्षित रहे। क्योंकि राजा नन्दीवर्धन और उसका राज्य भगवान महावीर के समय में विद्यमान थे। तभी तो भगवान महावीर के पावापुरी में निर्वाण होने के समाचार पाते ही उनके दाहसंस्कार के अवसर पर शीघ्र पावापरी पहंच गये। यह बात भी ध्यानीय है कि यदि वैशाली में क्षत्रियकंड होता तो यह पावापुरी से अधिक दूर होने से वे वहां दाहसंस्कार के समय पर कदापि नहीं पहुंच सकते थे। अत: नन्दीवर्धन और उसके राज्य का सुरक्षित रहना ही हमें लच्छुआड़ वाले क्षत्रियकंड को ही भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने को बाध्य करती है।
(१२) विजयी अजातशत्रु ने अंग जनपद को पहले ही अपने राज्य में मिला लिया था। क्षत्रियकुंडग्रामनगर पहाड़ों से घिरा होने से प्राचीनकाल में राजा अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिये ऐसे स्थानों में ही राजधानी बनाया करते थे और ऐसी पहाड़ी पर ही मज़बूत किला बनाते थे। राजा सिद्धार्थ ने भी इन पहाड़ियों पर सुदृढ़ किला बनवाया था। जिस की टूटी-फूटी दीवारें आज भी इन पहाड़ियों पर देखी जा सकती हैं। अजातशत्रु केलिये इस किले को जीतना असंभव था। क्योंकि वैशाली के युद्ध में उसकी सैनिकशक्ति कम हो गई थी। इसलिये यह अजातशत्रु के अधीन नहीं हो पाया।
४. भाषाशास्त्र (LINGUSTICAL) भगवान महावीर ने अपने सिद्धान्तों का प्रचार अपनी स्थानीय भाषा अर्धमागधी में किया था। यदि वैशाली में उनका जन्म होता तो उनकी भाषा अर्द्धमागधी न होकर बज्जी अथवा वैदेही होती। अर्द्धमागधी भाषा का यह एक महत्वपूर्ण प्रमाण है जो कि भगवान महावीर का वास्तविक जन्मस्थान दंढने में अमोघ सहयोगी है। लछुआड़ का सभी पर्वतीय प्रदेश आज भी मागधी भाषा-भाषियों की परिधि में आता है।
, कुछ लोगों का मत है कि भगवान महावीर के समय में सारे भारत की भाषा । अर्द्धमागधी थी.पर यह मान्यता निराधार है यदि उस समय सारे भारत की भाषा ।
अर्धमागधी होती तो समकालीन बुद्धदेव ने यह भाषा न अपना कर पालीभाषा में - अपना उपदेश क्यों दिया? संस्कृत नाटकों में जिस प्राकृत भाषा का प्रयोग किया