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विशेष प्रयत्न के नष्ट हो जाते हैं। नीचे आठ कर्मों के स्वरूप आदि का वर्णन किया जा रहा है-
१ ज्ञानावरणीय कर्म
जिसके द्वारा पदार्थों का स्वरूप जाना जावे उसका नाम ज्ञान है तथा जो कर्म ज्ञान का आ छादन करनेवाला हो वह ज्ञानावरणीय कम है। ज्ञान पाँच प्रकार का है । यथा - ( १ ) श्रुतज्ञानावरण ( २ ) आमिनिबोधिक ज्ञानावरण ( ३ ) अवधि ज्ञानावरण ( ४ ) मन पययज्ञानावरण (५) केवलज्ञानावरण ।
२ दशनावरणीय कम
पदार्थों के सामा य बोध का नाम दशन है । अस जिस कम के द्वारा इस जीवात्मा का सामान्य बोध आवृत हो जावे उसे दशनावरणीय कहते हैं । इस कम के ९ भेद गिनाये गये है जिसम प्रथम पाँच निद्रा से सम्बन्धित हैं तथा अन्य चार दशन सम्बन्धी है ( १ ) निद्रा (२) निद्रा निद्रा (३) प्रचला ( ४ ) प्रचला प्रबला ( ५ ) स्त्यानगृद्धि ( ६ ) चक्षदशनावरण (७) अवक्षदशनावरण ( ८ ) अवधिदर्शनावरण (९) केवलदर्शनावरण ।
३ वेदनीय कम
जिस कम के द्वारा सुख-दुख का अनुभव किया जाये उसका नाम वेदनीय कम
१ उत्तराध्ययन ३२।१९ ।
२ नाणावरण पचविह सुय अनिणिबोहिय ।
आहिनाण च तइय मण नाणं व केवल | वही ३३।४ तथा उत्तराध्ययन सूत्र एक परिशीलन प १५४ ।
३ निद्दातहेव पयला निद्दानिद्दा पयल पयलाय ।
नायम्बा ॥
तत्तोय योण गिद्धी उ पचमा होइ arge चक्ख ओहिस्स दसण केवले य एव तु नवविगप्पं
आवरणे ।
तथा उत्तराध्ययन सूत्र एक परिशीलन पू १५५ । ४ बेयणीय पिय दुविह सायमसाय व आहिय ।
सायस्स उ बहू भया एमेव असायस्स वि ।।
नायव्य दसणा वरण || उत्तराध्ययन ३३।५६
उत्तराध्ययन ३३१७ ।