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भूमि २३
है कि सभी त्रिपिटक का संकलन भगवान् बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् ४७७ ई प राजगृह में आयोजित प्रथम महासगीति-सम्मेलन में किया गया था । द्वितीय और तृतीय महासम्मेलनों में तो इन सकलनों को पर्णता प्राप्त हो गयी थी । अत कहा जा सकता है कि धम्मपद और बौद्ध साहित्य का सकलन ई पू ४७७ तक हो चुका था । इसके लिए कुछ बाह्य प्रमाण दिये जा रहे है । "लिन्दपन्हो एक प्राचीन एव सुविख्यात पालि-ग्रन्थ है । इसकी रचना प्रथम शताब्दी के आरम्भ में हुई है । धम्मपद के बहुत सारे उद्धरणो का उल्लेख इसके अन्तगत आया है । कथावत्थ धम्मपद की बहुत सारी उक्तियो को उद्धत करता है । महानिद्देस और चुल्लनिद्देस भी ई पू द्वितीय शताब्दी के पश्चाद्वर्ती नही हो सकता क्योंकि सम्राट अशोक ने धम्मपद के अप्पमादवन्ग को विद्वान श्रमणो से सुना था जो इस बात का प्रमाण है कि धम्मपद अशोक से पदवर्ती रचना है। अशोक का काल ई प तीसरी शती माना जाता है । अत यह कहा जा सकता है कि धम्मपद का रचना-काल ई प तीसरी शताब्दी से पर्ववर्ती है ।
धम्मपद के अनेक सस्करण और अनुवाद प्राप्त है। विशेष उल्लेखनीय अग्रेजी अनुवाद मक्सम्यलर (एस बी ई ) राधाकृष्णन् नारदथेर एफ एल वुडबड ए एल एडमण्ड इरविंग बैबिट और यू धम्मज्योति के तथा हिन्दी अनुवाद महापण्डित राहुल साकत्यायन और भदन्त आनन्द कौसल्यायन के है । भिक्षु जगदीश काश्यप द्वारा सम्पादित धम्मपद का देवनागरी सस्करण भी खुद्दकनिकायपालि की प्रथम जिद में विद्यमान है । विभिन्न विद्वानो ने अपने सस्करणो में धम्मपद और इसमें प्राप्त उपदेशो के विषय में न्यनाधिक विस्तृत विद्वत्तापर्ण भूमिकायें भी लिखी है । धम्मपद को समझने म अटठकथा भी अत्यन्त सहायक है जिसका बलिगेम ने अग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया है और जिससे यह सूचना प्राप्त होती है कि बौद्ध परम्परा के अनुसार किन अवसरों पर बुद्ध ने विभिन्न गाथाय कही थीं । धम्मपदट्ठकथा आचार्य बुद्धघोष की रचना है या नहीं इसके विषय म सन्देह प्रकट किया गया है । जर्मन विद्वान् डॉ विल्हेल्म गायगर ने इसे आचाय बुद्धघोष की रचना नहीं माना है । उन्होने धम्मपद कथा को जातकटठवण्णना से भी बाद की
रचना माना है क्योंकि
१ ओरिजिन्स ऑफ बुद्धिज्म अध्याय १ ।
२ मिor बमरक्षित धम्मपद की भूमिका पृ ४ ।
३ राधाकृष्णन् एस धम्मपद की भूमिका |
४ गायगर विल्हेल्म पानि बिटूरेचर एण्ड लैंग्वेज १० ३२ ।