________________
२२ बोडसमा जनधर्म
साह पालि-साहित्य में नही है। इसकी नैतिक दष्टि जितनी गम्भीर है उतनी ही वह प्रसादगुणपूर्ण भी है।
श्री अघट ज एडम ड ने धम्मपद के अपन अग्रेजी अनुवाद की भूमिका में लिखा है- यदि एशिया-खण्ड में कभी किसी अविनाशी ग्रन्थ की रचना हुई तो वह यह है । इन पदो ने अनेक विचारको के हृदय में चिन्तन की आग जलायी है। इन्हीसे अनुप्राणित होकर अनेक चीनी यात्री मगोलिया के भयानक कान्तार और हिमालय को अलध्य चोटियां लाकर भगवान् बुद्ध के चरणो से पूत भारत भमि के दशनाथ आए । बुद्ध के पमपदो को प्ररणा से ही महाराज अशोक ने अपने राज्य म प्राणदण्ड का निषष किया था और मनुष्यो तथा जानवरो तक के लिए अस्पताल खोले थे।
पूज्य भदन्त आनन्द कौसल्यायन का कथन बिल्कुल ठीक है कि यदि केवल एक पुस्तक को जीवनभर साथी बनाने की कभी इच्छा हो तो विश्व के पुस्तकालय म षम्मपद से बढकर दूसरी पुस्तक मिलनी कठिन है ।
धम्मपद मलत बुद्ध वचन ह अत इसका रचना काल अज्ञात है। लेकिन बाद के साक्ष्यो के आधार पर यह पता चलता है कि हनसाग जिसन सातवी शताब्दी में भारत का भ्रमण किया उसका विचार है कि त्रिपिटक काश्यप के द्वारा प्रथम सगीति के अन्त म ताम्रपत्रो पर लिखा गया था जो बाद म राजा बट्टगामिनि के शासन काल म ( ८८ से ७६ ई पूर्व ) उसे पुस्तको म इसलिए लिपिबद्ध कर दिया गया कि बौद्धधर्म युगों तक जीवित रह सके । अत स्प ट है कि धम्मपद का वतमान रूप इसी समय निश्चित हुआ था।
इस ग्रन्थ की निर्माण तिथि के सम्बन्ध मे प्रधानतया दो प्रकार के मत पाये जाते है। प्रथम मत प्रोफसर मक्सम्यलर का है जिनके अनुसार प्रारम्भ में सभी बोट अन्य मौखिक परम्परा के रूप में ये जो बाद म सिंहल्द्वीप के राजा बट्टगामिनि के आदेश से लिखित रूप में माय । महावश नामक बौद्ध साहित्य की रचना में इस तथ्य का उलेख मिलता है । महावश का निर्माण काल ४५९-४७७ ई प्रसिद्ध है । दूसरा मत
१ उपाध्याय भरतसिंह पालि-साहित्य का इतिहास पृ २३८ । २ कौसल्यायन भदन्त आनन्द धम्मपद की भूमिका पृ १। ३ मक्सम्यूलर एफ सेक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट भूमिका १ १२ । ४ वही इण्डियन एण्टीक्यरी नवम्बर १८८ १ २७ । ५ दीपयश अध्याय २ पंक्ति २ । ६ सेक्रेर गुफ्स वॉफ दी ईस्ट बिल्ल १ भूमिका ।