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२४२ : बौद्ध तथा जैनधर्म
अनेकश
पक्षियो का उल्लेख मिलता
समुद्र -पक्षी ( जिनके पख
का भी प्रयोग किया जाता था। लेकिन ग्रन्थ में है जो पाले नही जाते थे यथा --- चमगादड हस चकवा सदा अविकसित रहते है और डबे के आकार सदश सदा ढके रहते है ) वितत पक्षी ( जिनके पंख सदा खले रहत है ) बकरे का प्रयोग मेहमान के भोजन के लिए किया जाता था । पशओ को कण ओदन और यवस ( मग उडद आदि धान्य ) दिये जाते थे । चावलों की भसी अथवा चावल मिश्रित भसी पुष्टिकारक तथा सअर का प्रिय भोजन था ।
भारतीय व्यापारी अ तर्देशीय व्यापार में दक्ष थे। व किराना लेकर बहुत दूर दूर तक जाते थे । चम्पा नगरी का वणिक पालित चम्पा से नौकाओं में माल भरकर रास्ते के नगरो म व्यापार करता हुआ पिहुण्ड नगर में पहचा। वस्तु को खरीदन और बेचनेवाले को वणिक वहा जाता था। व्यापार म कभी कभी मूलधन ही शेष बचता था । व्यापार करना मख्य रूप से वणिक का ही काय माना जाता था । यापारी अपना माल भरकर नौकाओ व जहाजो से दूर दूर देशो म जाते थे। कभी कभी तफान
१ नाहरम पक्खिणिपजरे वा ।
उत्तराध्ययन १४।४१ तथा १९/६३ आदि तथा उत्तराध्ययन सूत्र एक परिशीलन प ४१४ ।
२ चम्म उलोमपक्खीय तहया समुग्गपक्खिया । fareपक्खीयबोधव्वा पविखणो य चउविहा ॥
३ अयकक्करमोईय तदि ले चियलोहिए । आउय नरए कखे जहाएस व एलए |
४ ओयण जवस दे जापोसेज्जा विसयगण |
उत्तराध्ययन ३६।१८७ ।
वही ७७ ।
वही ७।१ ।
५ वही १।५ ।
६ वही २१।२ ।
७ विक्किणन्तोय वाणिओ ।
सूत्र एक परिशीलन प ४१८ ।
८ गोत्थ लहई लाभ एगो मूलेणआगओ ।
उत्तराध्ययन ७।१४ ।
९ एगोमलपि हारिता आगओ तत्य वाणिओ । वही ७।१५ २३।७ -७३ ॥
वही ३५।१४ तथा उत्तराध्ययन