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________________ अध्याय ६ धम्मपद मे प्रतिपादित सामाजिक एव सास्कृतिक सामग्री तथा उसका उत्तराध्ययन मे प्रतिपादित सामाजिक एव सास्कृतिक सामग्री से समानता और विभिन्नता धम्मपद में प्रतिपादित सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री धम्मपद म यद्यपि वर्णव्यवस्था का सद्धान्तिक पक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है। तथापि उसकी गाथाओ से स्पष्ट है कि तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था चार वर्णों और उससे सम्बद्ध अनफानक जातियो के रूप में ही थी । ब्राह्मण के लक्षणो की विवचना के लिए ब्राह्मणवग का एक अध्याय ही धम्मपद म मिलता है । हिदू धर्मशास्त्रो के अनुसार ब्राह्मणो के काय थे- अध्ययन-अध्यापन यजन याजन दान और प्रतिग्रह feng इन्हें मलत एक आदर्श के रूप म ही मानना चाहिए। समचे ब्राह्मणवग की एक थोडी-सी सख्या ही इस आदर्श तक पहुच पाती थी और अनेक ब्राह्मण कृषि राजकाय आदि म लग थ । धम्मपद में हम पूरा एक अध्याय ही ब्राह्मण बनानवाले गुणो के वर्णन के रूप म देखत है । बुद्ध को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होन जमना जाति के सिद्धान्त पर कठोर आघात किया तथा चरित्र कम और गुण को महत्व प्रदान करते हुए ही किसी यक्ति की श्रष्ठता स्वीकार करने का उपदेश दिया । बुद्ध न उसीको सच्चा ब्राह्मण माना जो तप ब्रह्मचय सयम और इन्द्रिय दमन जैसे गुणो से युक्त हो । क्षत्रिय और वश्य शब्द का धम्मपद में दृष्टिगोचर नही होता । घमसूत्रो म जैसे वैश्य और शूद्रो के ब्राह्मण और भाँति अलग अलग वर्णों के रूप म उल्लेख मिलत हैं उस रूप में शूद्रो का धम्मपद में कोई उल्लेख नही है । किन्तु साधारणतया धम्मपद म एसी अनेक हीन जातियो का सीधे उल्लेख क्षत्रियों की १ अगुत्तरनिकाय पचकनिपात वितीय पण्णासक प्रथभवग सातवां सूत्र । २ षम्मपद छब्बीसवा ब्राह्मणवग्ग तुलनीय - सुसनिपात वासेटठसुत प १६५-१७१ 1 ३ उदक हि नयन्ति नेत्तिका उसुकारा नमयन्ति तेजन । दारु नमयन्ति तच्छका अस्तान दमयन्ति पण्डिता ॥ धम्मपद गाथा - सख्या ८ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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